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मैं एक जिस्म हूँ
सिर्फ 
एक ठंडा जिस्म
और मेरा
ठंडा बेजान जिस्म
पड़ा है लावारिस
कई जगहों पर
रास्तों में, फुटपाथ पर, कूड़े के ढेर पर,
बसों में, रेलवे-प्लेटफार्म पर 
लोगों की ठोकरों में,
पैरों में आता हुआ
या फिर
मिल जाउंगी सुलगती..
ऐश-ट्रे में
जो सजी है मेज पर
और ... मेज
घर की हो
या
होटल की
क्या फर्क पड़ता है....

~ © AjAy Kum@r 

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Comment

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Comment by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 7:02pm

मेरे सभी ज्ञानी मित्रों का शुक्रिया, मैं हृदये सा आभारी हूँ

Comment by Abhinav Arun on May 13, 2012 at 6:56pm

सच है सिगरेट और उसे पीने वाले का हश्र बुरा ही होता है अच्छी रचना हार्दिक साधुवाद श्री अजय जी

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2012 at 3:11pm

phool ho cigrete hashr dono ka ek 

apna jivan swyam chalte karte fareb 

badhai. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 13, 2012 at 1:05pm

बुरे लोगो को अच्छे लोगो के मुंह नहीं लगना चाहिए, वरना सिगरेट की हस्र तो हमें पता ही है , खुबसूरत रचना अजय जी, बधाई हो |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 13, 2012 at 12:19pm
जो सजी है मेज पर
और ... मेज
घर की हो
या
होटल की
क्या फर्क पड़ता है....अच्छी पंक्तियाँ सबका अपना -अपना वजूद है यहाँ और अपना अपना भाग्य 
Comment by Bhawesh Rajpal on May 13, 2012 at 9:02am

 

अजय जी  !  कोई सार्थक सन्देश  ? 
Comment by MAHIMA SHREE on May 12, 2012 at 9:00pm
जो सजी है मेज पर
और ... मेज
घर की हो
या
होटल की
क्या फर्क पड़ता है....

बहुत ही गहरा ...बधाई आपको

Comment by Nilansh on May 12, 2012 at 8:51pm

bahut sunder ajay ji

 मेज

घर की हो
या
होटल की
क्या फर्क पड़ता है....

कृपया ध्यान दे...

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