वे विचार करते हैं
पर नहीं जनम लेता कोई नया विचार बाँझ मस्तिष्क से
इसी सोच विचार में बैठे रहने ने
अकड़ा दी है उनकी पीठ और गर्दन
कहीं से आती भी है आहट
किसी नए विचार की
तो उस पर ध्यान देने कि अपेक्षा
वो करते हैं प्रयास
अकड़ी गर्दन घुमा कर देखने का कि
ये आवाज़ कहाँ से आती है
तब जाके जान पाता हूँ मैं कि
सुनने से ज़यादा , उनके लिए महत्वपूर्ण है
देखना आवाज़ कि शकलो-सूरत
और इस तरह नहीं ले पाते
वे ' गोद ' किसी भी नए विचार को
क्यूंकि ज़िद है उन्हें कि
पैदा हो हर नया विचार
उन्ही के भीतर से
जिस से आगे बढ़ सके
' वंश'
उनकी नपुंसक सोच का...
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"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
क्या बात है आदरणीय
बेहद प्रभावी अंदाज में मानसिकता को प्रस्तुत किया है आपने
जय हो
बधाई हो
संदेशप्रद रचना बधाई आपको ।
बहुत ही सशक्त चित्रण आदरणीय क्या प्रहार किया है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
जिस तरह की मानसिकता को अभिव्यक्ति की विषय वस्तु बनाया गया है...वह तो किसी भी लग विचार को ग्रहण करने को तैयार ही नहीं होती... बहुत बारीकी से ऐसे कपाट बंद मस्तिष्क की बंजरता को शब्द मिले हैं..
हार्दिक बधाई
गज़ब है श्रीमान ...आपने जो कहना चाहा है ...सफलता से पाठक तक पहुँच रही है ! ..बेजोड़ कृति !
सुनने से ज़यादा , उनके लिए महत्वपूर्ण है
देखना आवाज़ कि शकलो-सूरत
और इस तरह नहीं ले पाते
वे ' गोद ' किसी भी नए विचार को
क्यूंकि ज़िद है उन्हें कि
पैदा हो हर नया विचार
उन्ही के भीतर से
जिस से आगे बढ़ सके
' वंश'
उनकी नपुंसक सोच का.....
मारक प्रहार किया आपने ! बहुत सशक्त !
आदरणीय इस सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय , बहुत सुन्दत भाव अभिव्यक्ति , सुन्दर विचार !!!!! आपको बधाई !!!!
अजय कुमार जी
बड़ा अच्छा व्यंग्य है आपका
बाँझ मस्तिष्क में विचार नहीं आते i बड़ी सुष्ठु योजना है i
आपके भाव पसंद आये i
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