जिन्दगी कबो दुख के धुप ,त
कबो सुख के छांव होके ला।
तड़प से भरल शहर,त
कबो पहाड़ पर बसल गांव होके ला।
जिन्दगी एक सुलगत ईंधन बा
केहु पापी बा, त केहू पावन बा।
जिन्दगी का हऽ? कहाँ तक बताई हम
ई हर कदम पर नया इम्तिहान होके ला।
कबो पलेला माइ के अँचरा मे,
कबो विधालयों मे चहकेला ।
कबो कालेज मे इतराला
एह तरी जिन्दगी धीरे-धीरे जवान होके ला।
फेर आफिस मे पिस के
गृहस्थी पर कुर्बान होके ला ।
जिन्दगी विधाता के दिहल
एक प्यारा सा तोहफा बा,
जउन बड़ा किस्मत से नसीब होके ला।
रुठ के दुर चल जाला कबो, अउर
कबो बहुत करीब होके ला।
ई अइसन हार विधाता दिहलन हमनी के
जे मे कुछ कांट त, कुछ कली गुथल रहेला।
दुख के कांट होके, चाहे सुख के कली
एक धागा मे तरिका से संजोवल रहेला।
कबो महलन मे हँसेला ,अउर
कबो ई झोपड़ीयन मे रोवेला।
कबो मिलन के मधुमास होके ला,
त कबो बिछोह के लंबा बनवास होके ला।
कबो जवानी के आफताब
त कबो बुढ़ापा के मुरझाइल गुलाब होके ला।
जिन्दगी सुख के दिन
त कबो दुख के रात होके ला
जहवाँ भी जाई रउरा
सदा रउरा साथ होके ला
सदा रउरा साथ होके ला............जिन्दगी।।।।।।।।।।।।।
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