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पिया खड़े है सामने,

घूंघट के पट खोल।

 

चुप रहने से हो सका, आखिर किसका लाभ,

आज समय की मांग है, नैनो में रक्ताभ।

आधी ताकत लोक की,

अपनी पीड़ा बोल।

 

पौरुषता का वो करें, अहम् हजारों बार,

लेकिन तेरे बिन सखी, बिलकुल है लाचार।

वो आयेंगे लौटकर,

सारी धरती गोल।

 

जननी से बढ़कर भला, ताकत किसके पास,

आज संजोना है तुम्हें, बस अपना विश्वास।

हिम्मत से मिटना सहज,

जीवन का ये झोल।

 

अपने मन की बात को, कहने से मत चूक,

चाहे तेरे सामने, भय की हो बन्दूक।

स्वयम कहेगा देखना,

मुँह में मिसरी घोल।

 

तेरे ही तो त्याग से, चलता है घरबार,

तेरे क़दमों में छिपा, इस जीवन का सार।

नारी तू नारायणी,

तू तो है अनमोल।

----------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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3 जनवरी 1831 को जन्मी, स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए काम करने वाली सावित्री बाई फुले को समर्पित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 3, 2017 at 12:36pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..आपकी रचना के माध्यम से मेरे ज्ञान कोष में और बृद्धि हुयी इस शानदार गीत के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर बधाई के साथ 

Comment by Samar kabeer on January 3, 2017 at 10:50am
जनाब मिथिलेश वामनकर साहिब आदाब,बहुत सुंदर दोहा गीत हुआ है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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