For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लेकिन आगे कैसे बढ़ लें? - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

नई नई कुछ परिभाषाएँ, राष्ट्र-प्रेम की आओ गढ़ लें।

लेकिन आगे कैसे बढ़ लें?

 

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।

महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।

अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।

हम भारत के  धीर-पुरुष हैं,  कष्ट सहें, यशगान करें सब।

चित्र वीभत्स मिले जो कोई,

स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।

 

मर्यादा के पृष्ट खोलकर, अंकित करते भ्रम का लेखा।

राष्ट्रवाद का कोरा डंका, निज स्वार्थों से पूरित देखा।

दुष्प्रचार की क्रीड़ा करते, जन-धन को न्योछावर कर दें।

जन-जन के वें अंतर्मन में,  सोच समझ कुछ ऐसी भर दें।

कष्ट लिखा हो जिन पन्नों पर,

उनको भी सुखदायी पढ़ लें।

 

प्रश्न करे जब लोकतंत्र का, उत्तर देकर वह  छलता है।

नवल भूमिका देखी छवि की, खेल धारणा का चलता है।

हाथी के पीछे छिपकर वें,चींटी को विकराल बताते।

शासक हैं या उड़ते पक्षी, अद्भुत सी बातें सिखलाते।

वृक्ष खड़े हैं नदिया तीरे,

उल्टी धारा हो तो चढ़ लें।

 

----------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
----------------------------------------------------------

Views: 962

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 2:41pm

आदरणीया राजेश दीदी, आपकी सराहना और उत्साहवर्धक पाकर दिल खुश हो जाता है. प्रयास सार्थक लगने लगता है. आपका हार्दिक आभार. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2017 at 10:43pm

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।

महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।

अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।

हम भारत के  धीर-पुरुष हैं,  कष्ट सहें, यशगान करें सब।

चित्र वीभत्स मिले जो कोई,

स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।

 ----वाह्ह्ह्ह क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है आज के हालात पर भारत का इंसान तो धीरज करना ही सीखा है दिन को रात कहलायेंगे तो रात ही कहने लगेगा मात्रभूमि की श्रद्धा तो बाद में आती है पहले अपनी तिजौरियों की श्रद्धा आती है | बहुत सुंदर गीत लिखा है मिथिलेश भैया बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 10:49pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, आपने प्रस्तुति के मूल को बहुत सूक्ष्मता से पकड़ा है. आपने बिलकुल सही कहा कि जो समस्या का समाधान करने का दायित्व निभाने आते हैं फिर स्वयं ही समस्याएं दे जाते हैं और अंततः दोष जनता का और सजा भी. आपको प्रस्तुति पसंद आई, जानकार आश्वस्त हूँ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 7, 2017 at 9:48pm
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी, कुछ जटिल प्रश्नों को उठाया है आपने , ऐसे प्रश्न जो स्वयं अनेक प्रश्न उठाये खड़े हैं , समस्याएं हैं , वैसे इतिहास में जाएँ तो इस भूखंड पर बसने वालों का जीवन कब समस्यायों से भरा नहीं था ? जो समस्या-समाधान का दायित्व उठाये घूमते हैं , और समस्याएं दे जाते हैं और जनता को घुमाते पाए जाते हैं। हर समस्या के लिए जनता को दोषी बताते और जनता से समाधान निकालने की , त्याग करने और कष्ट सहने की मांग करते हैं , बात चाहे सफाई की हो या आतंकवाद से निपटने या उसे सहने की। रास्ते वे उलझाते हैं , सुगम मार्ग हमसे तलाशने को कहते हैं। नेतृत्व ही परिभाषित नहीं है परिणामतः जनता भ्रमित रहती है , और नित वही दुःख सहती है , शिक्षा के अभाव में हम राजनीति से समाधान की उम्मीद करते हैं , इससे अधिक दुखद , त्रासद और भ्रामक स्थिति और क्या होगी।
आपने चित्रांकन अच्छा किया है , बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2017 at 10:16pm

आदरणीय बृजेश जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 4, 2017 at 10:01pm
वाह क्या खूब लिखा... बेहतरीन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 2:02pm

आदरणीय विजय निकोर सर, आपको यह प्रयास पसंद आया जानकार मुग्ध हूँ.  इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 2:01pm

आदरणीय गिरिराज सर,  इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।

Comment by vijay nikore on January 3, 2017 at 11:26am

// मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।

महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।

अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।

हम भारत के  धीर-पुरुष हैं,  कष्ट सहें, यशगान करें सब।//

क्या शब्द चुने हैं, कितने सुंदर भाव ! आपके गीत ने मन मोह लिया, आदरणीय मिथिलेश भाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 10:13am

चित्र वीभत्स मिले जो कोई,

स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।   -- क्या बात है , आदरनीय मिथिलेश भाई , बहुत सुंदर गीत रचा है आपने , हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
1 minute ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
11 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
yesterday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Feb 17

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service