नई नई कुछ परिभाषाएँ, राष्ट्र-प्रेम की आओ गढ़ लें।
लेकिन आगे कैसे बढ़ लें?
मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।
महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।
अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।
हम भारत के धीर-पुरुष हैं, कष्ट सहें, यशगान करें सब।
चित्र वीभत्स मिले जो कोई,
स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।
मर्यादा के पृष्ट खोलकर, अंकित करते भ्रम का लेखा।
राष्ट्रवाद का कोरा डंका, निज स्वार्थों से पूरित देखा।
दुष्प्रचार की क्रीड़ा करते, जन-धन को न्योछावर कर दें।
जन-जन के वें अंतर्मन में, सोच समझ कुछ ऐसी भर दें।
कष्ट लिखा हो जिन पन्नों पर,
उनको भी सुखदायी पढ़ लें।
प्रश्न करे जब लोकतंत्र का, उत्तर देकर वह छलता है।
नवल भूमिका देखी छवि की, खेल धारणा का चलता है।
हाथी के पीछे छिपकर वें,चींटी को विकराल बताते।
शासक हैं या उड़ते पक्षी, अद्भुत सी बातें सिखलाते।
वृक्ष खड़े हैं नदिया तीरे,
उल्टी धारा हो तो चढ़ लें।
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीया राजेश दीदी, आपकी सराहना और उत्साहवर्धक पाकर दिल खुश हो जाता है. प्रयास सार्थक लगने लगता है. आपका हार्दिक आभार. नमन
मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।
महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।
अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।
हम भारत के धीर-पुरुष हैं, कष्ट सहें, यशगान करें सब।
चित्र वीभत्स मिले जो कोई,
स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।
----वाह्ह्ह्ह क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है आज के हालात पर भारत का इंसान तो धीरज करना ही सीखा है दिन को रात कहलायेंगे तो रात ही कहने लगेगा मात्रभूमि की श्रद्धा तो बाद में आती है पहले अपनी तिजौरियों की श्रद्धा आती है | बहुत सुंदर गीत लिखा है मिथिलेश भैया बहुत बहुत बधाई
आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, आपने प्रस्तुति के मूल को बहुत सूक्ष्मता से पकड़ा है. आपने बिलकुल सही कहा कि जो समस्या का समाधान करने का दायित्व निभाने आते हैं फिर स्वयं ही समस्याएं दे जाते हैं और अंततः दोष जनता का और सजा भी. आपको प्रस्तुति पसंद आई, जानकार आश्वस्त हूँ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय बृजेश जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।
आदरणीय विजय निकोर सर, आपको यह प्रयास पसंद आया जानकार मुग्ध हूँ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।
आदरणीय गिरिराज सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।
// मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।
महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।
अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।
हम भारत के धीर-पुरुष हैं, कष्ट सहें, यशगान करें सब।//
क्या शब्द चुने हैं, कितने सुंदर भाव ! आपके गीत ने मन मोह लिया, आदरणीय मिथिलेश भाई।
चित्र वीभत्स मिले जो कोई,
स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें। -- क्या बात है , आदरनीय मिथिलेश भाई , बहुत सुंदर गीत रचा है आपने , हार्दिक बधाइयाँ ।
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