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पिया खड़े है सामने,

घूंघट के पट खोल।

 

चुप रहने से हो सका, आखिर किसका लाभ,

आज समय की मांग है, नैनो में रक्ताभ।

आधी ताकत लोक की,

अपनी पीड़ा बोल।

 

पौरुषता का वो करें, अहम् हजारों बार,

लेकिन तेरे बिन सखी, बिलकुल है लाचार।

वो आयेंगे लौटकर,

सारी धरती गोल।

 

जननी से बढ़कर भला, ताकत किसके पास,

आज संजोना है तुम्हें, बस अपना विश्वास।

हिम्मत से मिटना सहज,

जीवन का ये झोल।

 

अपने मन की बात को, कहने से मत चूक,

चाहे तेरे सामने, भय की हो बन्दूक।

स्वयम कहेगा देखना,

मुँह में मिसरी घोल।

 

तेरे ही तो त्याग से, चलता है घरबार,

तेरे क़दमों में छिपा, इस जीवन का सार।

नारी तू नारायणी,

तू तो है अनमोल।

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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3 जनवरी 1831 को जन्मी, स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए काम करने वाली सावित्री बाई फुले को समर्पित 

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 10:33pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 7, 2017 at 9:52pm
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी , सुन्दर समर्पित गीत , बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 2:34pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. आप सही कह रहे हैं. पुरुषत्व का उच्चारण पुरूषत्व हो रहा है. उसे पौरुषता करना होगा. //पौरुषता का वो करें// सादर

Comment by रामबली गुप्ता on January 7, 2017 at 6:31am
आदरणीय मिथिलेश भाई जी इस शानदार गीत के लिए बल भर बधाई लीजिये। बहुत ही बेहतरीन गीत हुआ है।पुरुषत्व वाली लाइन में मात्रा भार 12 हो रहा है। थोड़ा पुनः देख लीजियेगा।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 6, 2017 at 3:43pm

आदरणीय अरुण कुमार निगम सर,  इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद।  सादर


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Comment by अरुण कुमार निगम on January 6, 2017 at 9:41am

आदरणीय मिथिलेश जी, सावित्री फुले को समर्पित सशक्त दोहा गीत हेतु बधाइयाँ. 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2017 at 10:15pm

आदरणीय सुशील सरना सर,  इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद।  सादर 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2017 at 10:13pm

आदरणीय गोपाल सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद।  आप सही कह रहे हैं. पुरुषत्व का उच्चारण पुरूषत्व हो रहा है. उसे पौरुषता करना होगा. //पौरुषता का वो करें//

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2017 at 10:11pm

आदरणीय गिरिराज सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। 

Comment by Sushil Sarna on January 4, 2017 at 8:25pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी इस सुंदर,सार्थक दोहा गीत के लिए हार्दिक बधाई। 

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