वज़्न : 1222 1222 1222 1222
मिलेंगी कुर्सियाँ लेकिन सियासी फ़न ज़रूरी है ।।
जुटाना है अगर बहुमत लचीलापन ज़रूरी है ।।(1)
कई पतझड़ यहाँ आके गये अफ़सोस मत करिये,
बहारों के लिए हर साल में सावन ज़रूरी है ।।(2)
हवाओं नें कसम खा ली जले दीपक बुझाने की,
उजाला ग़र बचाना है खुला दामन ज़रूरी है ।।(3)
वफ़ा की बात करते हो मियाँ इस दौर में तुम भी,
जहाँ शतरंज की बाज़ी बिछी हो धन ज़रूरी है ।।(4)
अगर कोई कहे तुमसे बताओ प्यार के मानी,
बताना दो दिलों में एक सी धड़कन ज़रूरी है ।।(5)
सिमट कर एक क़तरे में समा जाऊँ कसम से मैं,
मगर उस आँख में मेरे लिये तड़पन ज़रूरी है ।।(6)
मिलेगी छाँव बरगद की परिन्दों को भला कैसे,
शहर को कौन देगा आज जो बचपन ज़रूरी है ।।(7)
डगर में फूट जाए गगरिया राधा खड़ी रोये,
मगर उसके लिए थोड़ी बहुत फिसलन जरूरी है ।।(8)
गुज़र जाए अगर गुमनाम सी वो ज़िन्दगी भी क्या,
जरा खट्टी जरा मीठी कभी अनबन ज़रूरी है ।।(9)
हमेशा दोष देते हो भला क्यों ज़िन्दगी को तुम,
अगर जीना ज़रूरी है तो निश्छल मन ज़रूरी है ।।(10)
नई ग़ज़लें बनीं हैं "राज़" की पहचान कुछ दिन से,
कहा सबनें ख़यालों में नया चिंतन ज़रूरी है ।।(11)
"डॉ राज़ बुन्देली"
11/01/2016
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय राज भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय,,,
मिथिलेश वामनकर जी बहुत बहुत आभार,,,,इस स्नेहाशीष हेतु,,,,,
आदरणीय,,,,
Samar kabeer जी सादर आभार,,,,इस स्नेहाशीष हेतु,,,,,
आदरणीय,,,,
Sushil Sarna जी सादर आभार,,,,
मुहतरम जनाब राज बुन्देली साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय राज बुन्देली जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. कई अशआर मुग्ध कर रहे हैं. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर
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