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 कल हमारे समाज का सबसे श्रेष्ठ तबका ,

जो साक्षर कहलाते, आज निरक्षर हो गए ।

कूप मंडूप को ही जीवन का लक्ष्य समझा

आविष्कार कर न सके, वे गुलाम हो गए ।

समय की नजाकत को जिसने नहीं समझा,

ज्ञान का डंका बजाते, वे आज पीछे रह गए ।

इस बदलते जमाने में अपने को अलग रखा

विज्ञान के इस युग में वे अज्ञानी हो गए ।

खुद को सर्वश्रेष्ठ और दूसरों को मूर्ख समझा

वे दुनिया की इस दौड़ में सब पीछे रह गए ।

साथियों समय बदल रहा, नजाकत को समझो,

तुम लड़ोगे आपस में तो विरोधी जीत जाएगा ।

उठो जागो उसे पहचानों वरना देर हो जाएगी

तुम्हारे हिस्से की रोटी कोई और ही ले जाएगा ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Ram Ashery on January 17, 2017 at 3:47pm

श्री मान जी आपके सुझाव पर मैं पूरी तरह चलने का प्रयास करुगा । मैं इस जरूर काम कृगा  और अच्छा करने की चेष्टा करूंगा आपके इस मार्ग दर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

  

Comment by बृजेश नीरज on January 16, 2017 at 9:36pm

सर रचना को कुछ और समय दें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 16, 2017 at 9:36pm

आदरणीय राम जी, समय का महत्त्व बताती प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. इस विधा से परिचित नहीं हूँ. कृपया मार्गदर्शन निवेदित है. सादर 

Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 11:03am
जनाब राम आश्रय जी आदाब,ये रचना किस विधा में है ?

कृपया ध्यान दे...

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