( अज़ीम शायर मुहतरम जनाब कैफ़ी आज़मी साहब की ज़मीन पर एक प्रयास )
221 2121 1221 212
मुझको कहाँ अज़ीज़ है कुछ भी चमन के बाद
क्या मांगता ख़ुदा से मैं हुब्ब-ए-वतन के बाद
तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम
ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?
वो लम्स-ए-गुल हो, या हो कोई और शय मगर
दिल को भला लगे भी क्या तेरी छुवन के बाद
वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर
बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के बाद
रहती है बेक़रार पर आती नहीं है धूप
मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद
ना आशना तू क्या हुआ ,सारा जहाँ मुझे
लगने लगा है आशना उस अंजुमन के बाद
ऐ मेरी नज़्म बोल क्या तू भी उदास है ?
ग़मगीन जैसे मैं हुआ , तर्क़े सुखन के बाद
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आ. बड़े भाई गोपाल जी , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरनीय समर भाई , मंच तक सूचना पहुँचाने के लिये और दुआओं के लिये हृदय से आभार ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार
आदरनीय पवन भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।
आदरणीय दिनेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरनीय सौरभ भाई जी , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।
आदरनीत तस्दीक भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
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