22 22 22 22 22 2 ( बहरे मीर )
किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है
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सबके अंदर एक सिकंदर ज़िन्दा है
इसीलिये हर ओर बवंडर ज़िन्दा है
सब शर्मिन्दा होंगे, जब ये जानेंगे
अभी जानवर सबके अंदर ज़िन्दा है
मरा मरा सा बगुला है बे होशी में
लेकिन अभी दिमाग़ी बन्दर ज़िन्दा है
फूलों वाला हाथ दिखा असमंजस में
किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है
परख नली की बातों में कुछ घृणा दिखी
देख, अभी तक जंतर मंतर ज़िंदा है
अगर सुदामा कहीं दिखे, तो मानो तुम
दिखा नहीं है, लेकिन गिरधर ज़िंदा है
चक्र व्यूह रचने वाले ये याद रखें
अर्जुन जैसा एक धनुर्धर ज़िंदा है
क़दम ताल ही किये अभी तक, चले कहाँ
अभी वहीं है दूरी, अंतर ज़िन्दा है.
ज़रा ज़रा विष सब कंठों मे रखते हैं
सब में थोड़ा थोड़ा शंकर ज़िन्दा है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित -- संशोधित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , इस शेर की सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।
ज़रा ज़रा विष कंठों मे सब रखते हैं
सब में थोड़ा थोड़ा शंकर ज़िन्दा है... .... एक बहुत बड़ा शेर हुआ है, आदरणीय..
बधाई !
// कुछ शेर आपको अच्छे लगे ये जान कर बहुत खुशी भी हुई //
जी नहीं, पूरी ग़ज़ल कमाल की हुई है.
आपकी ग़ज़लों पर आपकी छाप स्पष्ट दीखने लगी है. यह रचना-प्रक्रिया में बढ़ा हुआ कदम माना जाता है, आदरणीय गिरिराजभाई.
आदरणीय सौरभ भाई , आपको गज़ल पर आये देख कर आत्मिक खुशी हुआ , इसलिये भी कि मै आपकी व्यस्तता और उसका कारन दोनो जानता हूँ ।
ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार । कुछ शेर आपको अच्छे लगे ये जान कर बहुत खुशी भी हुई और उत्साह वर्धन भी ।
आदरणीय , आज दोपहर की ट्रेन से सपरिवार बैंगलोर जाना है , तैयारी मे व्यस्त रहने के कारण अंतिम शे र मे सुधार नही कर पाया था ।
अभी कर देता हूँ ।
आदरणीय बृजेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
मात्रिक बहर ( बहरे मीर ) मे -- 22 को 121 , 112 , 211 करने की छूट होती है , इस बहर की खासियत है लय , इसका धयान रखना चहिये कि लय टूटे नहीं , इसके लिये मात्रा न गिरायें तो अच्छा , वैसे कहीं एक आध जगह मात्रा गिरानी भी पड़े भी लय का ध्यान रखें ।
अगर सुदामा कहीं दिखे, तो मानो तुम
दिखा नहीं है, लेकिन गिरधर ज़िंदा है .. ... इस शेर ने देह भर में सिहरन पैदा कर दी, आदरणीय. इस में ’गिरधर’ के इंगित पर देर तक सोचता रहा. सहायक या शोषक ? गिरधर का कौन सा रूप आज सुदामा के होने का कारण है ? अगर एक सुदामा है तो वहीं गिरधर भी है ! बहुत खूब ! बहुत खूब !!
फिर,
क़दम ताल ही किये अभी तक, चले कहाँ
दूरी अभी वही है , अंतर ज़िंदा है .................. अभी वहीं है दूरी अंतर ज़िन्दा है.. .. यह शेर भी झकझोर गया है, आदरणीय..
बाकी शेर तो हैं ही जिनपर देर तक वाह वाह की जा सकती है.
अंतिम शेर पर आपने चर्चा की ही है, सो आपके संशोधन की प्रतीक्षा है.
इस ठोस भावमय ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कोबूल कीजिए, आदरणीय गिरिराज भाई साहब
सादर
आदरणीय मो. आरिफ़ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरनीय समर भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।
आदरणीय लक्षमण भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।
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