2122 2122 2122
हर हथेली, क़ातिलों की जान ए जाँ है
ज़ह्र उस पे, मुंसिफों सा हर बयाँ है
बाइस ए हाल ए तबाही हैं, उन्हें भी --
बाइस ए तामीर होने का गुमाँ है
एक अंधा एक लंगड़ा हैं सफर में
प्रश्न ये है, कौन किसपे मेह्रबाँ है
किस तरह कोई मुख़ालिफ़ तब रहेगा
जब कि हर इक, दूसरे का राज दाँ है
जिन चराग़ों ने पिया ख़ुर्शीद सारा
उन चराग़ों में भला अब क्यूँ धुआँ है
जब वफादारी की क़समें खा चुके सब
क्या करिश्मा है कि लुटता कारवाँ है
ढोल माजी का उठाये पीट मत यूँ
क्या तेरा भी हाल, मुर्दा- बेज़बाँ है
जो दहकता कोयला देते थे खाने
आज शिकवा है, वो क्यूँ आतिशफिशाँ है
वो अलग है, ग़ैर मुल्क़ी परचमों पर
क्या तुम्हें दिखता नहीं वो गुलफ़िशाँ है
मैं पहुँच जाऊँगा मंज़िल तक यक़ीनन
गर कोई कह दे मुझे जाना कहाँ है
इक अधूरी नज़्म मेरी ज़िन्दगी थी
और उनकी भी अधूरी दासताँ है
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मुंसिफों -- न्यायाधीश , बाइस - कारण , तामीर = निर्माण , ख़ुर्शीद -- सूरज , आतिशफिशाँ - ज्वाला मुखी , गुलफिशाँ - फूल चढाने वाला
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
वाह सर
बहुत प्यारी ग़ज़ल
आदरनीय महेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय जयनित भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय समर भाई , गज़ल पर उपस्थ्ति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
'बाइस-ए-हाल-ए-तबाही हैं जो उनको -- जियादा सही है -- मै सुधार कर लूँगा
गुलफिशाँ का मतलब , फूल चढ़ाने वाला - मै भावार्थ लिखा था , ताकि समझने मे आसानी हो , वैसे मुझे लालूम है । यह शेर सामयिक है , ये मेरी गज़ल मे नही रहेगी .. अतः कोई सुधार आवशयक नही है ।
आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय गुर प्रीत भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय गुर प्रीत भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
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