For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रोहिताश्व मिश्रा
  • Male
  • फ़र्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
  • India
Share on Facebook MySpace

रोहिताश्व मिश्रा's Friends

  • नाथ सोनांचली
  • Samar kabeer
  • मिथिलेश वामनकर
  • Tilak Raj Kapoor
  • वीनस केसरी

रोहिताश्व मिश्रा's Groups

 

रोहिताश्व मिश्रा's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
UP
Native Place
Farrukhabad
Profession
Student
About me
Students. Studying

रोहिताश्व मिश्रा's Photos

  • Add Photos
  • View All

रोहिताश्व मिश्रा's Blog

इश्क़  अजब  है, तोहमत  लेकर आया हूँ।

22 22 22 22 22 2

इश्क़  अजब  है, तोहमत  लेकर आया हूँ।

और  लगता  है , शुहरत  लेकर  आया हूँ।



बदहाली   में   भी   सालिम   ईमान  रहा,

मैं  दोज़ख़  से   जन्नत   लेकर   आया  हूँ।



मिट्टी,  पानी,   कूज़ागर   की   फ़नकारी,

और  इक  धुंधली  सूरत  लेकर  आया हूँ।



कितने रिश्ते, कितने नुस्ख़े, कितना प्यार,

मैं   दादी  की   वसीयत  लेकर  आया  हूँ।



आज 'गली क़ासिम'  से होकर गुज़रा था,

साथ  में   थोड़ी  जन्नत   लेकर  आया  हूँ।…



Continue

Posted on November 29, 2018 at 4:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल : बहुत दिनों था मुन्तज़िर

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

बहुत दिनों था मुन्तज़िर फिर इन्तिज़ार जल गया।

मेरे तवील हिज्र में विसाल-ए-यार जल गया।

मेरी शिकस्त की ख़बर नफ़स नफ़स में रच गई,

था जिसमें ज़िक्र फ़तह का वो इश्तेहार जल गया।

मैं इंतिख़ाब-ए-शमअ में ज़रा सा मुख़्तलिफ़ सा हूँ,

मेरे ज़रा से नुक़्स से मेरा दयार जल गया।

मुझे ये पैकर-ए-शरर दिया था कैसे चाक ने,

मुझे तो सोज़ ही मिला मेरा कुम्हार जल गया।

पनाह दी थी जिसने कितने रहरवों को…

Continue

Posted on June 5, 2018 at 1:00pm — 10 Comments

एक कोशिश

फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन

ये जो राबिता है अपना फ़क़त एक शे'र का है।

कोई इक रदीफ़ है तो कोई उसका क़फ़िया है।

है अजीब ख़ाहिश-ए-दिल कि रहूँ गा साथ ही में,

मैं हबीब हूँ हवा का मेरा आश्ना दिया है।

कभी मुझ से आके पूछो सर-ए-शाम बुझ गया क्यों,

कभी उस तलक भी जाओ कि जो दिन में भी जला है।

कभी कश्तियों को छोड़ो दिले आबजू में उतरो,

मेरे पास आके देखो मेरे दिल में क्या छिपा है।

मेरा क्या है मेरी मंज़िल मुझे ढूँढ…

Continue

Posted on November 22, 2017 at 11:30am — 4 Comments

इक अजनबी दिल चुरा रहा था।

12122/12122

इक अजनबी दिल चुरा रहा था।
करीब मुझ को' बुला रहा था।

वो' कह रहा था बुझाए'गा शम्स,
मगर दिये भी जला रहा था।

वो' ज़ख़्म दिल के छुपा के दिल में,
न जाने' क्यों मुस्करा रहा था।

सबक़ मुहब्बत का' हम से' पढ़ कर,
हमें मुहब्बत सिखा रहा था।

बुरा है' टाइम तो' चुप है' "रोहित"।
नहीं तो' ये आईना रहा था।

रोहिताश्व मिश्रा, फ़र्रुखाबाद

मौलिक एवम अप्रकाशित

Posted on April 18, 2017 at 1:30pm — 15 Comments

Comment Wall (3 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 4:24pm on December 20, 2016, रोहिताश्व मिश्रा said…
शुक्रियः सर
At 1:56pm on May 21, 2016, रोहिताश्व मिश्रा said…
तुम इस को बन्द कर लो लाख़ पहरों मे भले रोहित ।
मगस को लौट कर जलाने शमा के पास जाना है।।
At 1:24am on November 22, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आपका अभिनन्दन है.

ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए

 ग़ज़ल की कक्षा 

 ग़ज़ल की बातें 

 

भारतीय छंद विधान से सम्बंधित जानकारी  यहाँ उपलब्ध है

|

|

|

|

|

|

|

|

आप अपनी मौलिक व अप्रकाशित रचनाएँ यहाँ पोस्ट (क्लिक करें) कर सकते है.

और अधिक जानकारी के लिए कृपया नियम अवश्य देखें.

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतुयहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

 

ओबीओ पर प्रतिमाह आयोजित होने वाले लाइव महोत्सवछंदोत्सवतरही मुशायरा व  लघुकथा गोष्ठी में आप सहभागिता निभाएंगे तो हमें ख़ुशी होगी. इस सन्देश को पढने के लिए आपका धन्यवाद.

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
5 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service