22 22 22 22 22 2
इश्क़ अजब है, तोहमत लेकर आया हूँ।
और लगता है , शुहरत लेकर आया हूँ।
बदहाली में भी सालिम ईमान रहा,
मैं दोज़ख़ से जन्नत लेकर आया हूँ।
मिट्टी, पानी, कूज़ागर की फ़नकारी,
और इक धुंधली सूरत लेकर आया हूँ।
कितने रिश्ते, कितने नुस्ख़े, कितना प्यार,
मैं दादी की वसीयत लेकर आया हूँ।
आज 'गली क़ासिम' से होकर गुज़रा था,
साथ में थोड़ी जन्नत लेकर आया हूँ।…
Added by रोहिताश्व मिश्रा on November 29, 2018 at 4:30pm — 3 Comments
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
बहुत दिनों था मुन्तज़िर फिर इन्तिज़ार जल गया।
मेरे तवील हिज्र में विसाल-ए-यार जल गया।
मेरी शिकस्त की ख़बर नफ़स नफ़स में रच गई,
था जिसमें ज़िक्र फ़तह का वो इश्तेहार जल गया।
मैं इंतिख़ाब-ए-शमअ में ज़रा सा मुख़्तलिफ़ सा हूँ,
मेरे ज़रा से नुक़्स से मेरा दयार जल गया।
मुझे ये पैकर-ए-शरर दिया था कैसे चाक ने,
मुझे तो सोज़ ही मिला मेरा कुम्हार जल गया।
पनाह दी थी जिसने कितने रहरवों को…
ContinueAdded by रोहिताश्व मिश्रा on June 5, 2018 at 1:00pm — 10 Comments
फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन
ये जो राबिता है अपना फ़क़त एक शे'र का है।
कोई इक रदीफ़ है तो कोई उसका क़फ़िया है।
है अजीब ख़ाहिश-ए-दिल कि रहूँ गा साथ ही में,
मैं हबीब हूँ हवा का मेरा आश्ना दिया है।
कभी मुझ से आके पूछो सर-ए-शाम बुझ गया क्यों,
कभी उस तलक भी जाओ कि जो दिन में भी जला है।
कभी कश्तियों को छोड़ो दिले आबजू में उतरो,
मेरे पास आके देखो मेरे दिल में क्या छिपा है।
मेरा क्या है मेरी मंज़िल मुझे ढूँढ…
ContinueAdded by रोहिताश्व मिश्रा on November 22, 2017 at 11:30am — 4 Comments
12122/12122
इक अजनबी दिल चुरा रहा था।
करीब मुझ को' बुला रहा था।
वो' कह रहा था बुझाए'गा शम्स,
मगर दिये भी जला रहा था।
वो' ज़ख़्म दिल के छुपा के दिल में,
न जाने' क्यों मुस्करा रहा था।
सबक़ मुहब्बत का' हम से' पढ़ कर,
हमें मुहब्बत सिखा रहा था।
बुरा है' टाइम तो' चुप है' "रोहित"।
नहीं तो' ये आईना रहा था।
रोहिताश्व मिश्रा, फ़र्रुखाबाद
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by रोहिताश्व मिश्रा on April 18, 2017 at 1:30pm — 15 Comments
22/22/22/22
तूफाँ से गर प्यार करोगे,
बाहों को पतवार करोगे।
अब कर दो इज्हार-ए-मुहब्बत,
कब तक छुप छुप प्यार करोगे।
छोड़ोगे कब हुक़्म बजाना,
कब ख़ुद को मुख्तार करोगे।
पेश आएंगे सभी अदब में,
जब खुद शिष्ट आचार करोगे।
दरिया पार तभी होगा जब,
ज़र्फ़ अपना पतवार करोगे।
इश्क़ में' हद से' गुज़रने वालों,
तुम ख़ुद को बीमार करोगे।
शाम हुई फैला अँधियारा,
जाने कब इज़्हार* करोगे।
*चराग़ रौशन करना…
Added by रोहिताश्व मिश्रा on February 15, 2017 at 4:30pm — 11 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
तू दूर हो तो मौत से कोई गिला नहीं।
हो पास गर तो कुछ भी यहाँ ज़ीस्त सा नहीं।
आएगी रौशनी यहाँ छोटी दरारों से,
है झौपड़ी में कोई दरीचा बड़ा नहीं।
आएगा कैसे घर पे कहो कोई नामाबर,
उनके किसी भी ख़त पे जब अपना पता नहीं।
मैं सोचता हूँ कह लूँ मुकम्मल ग़ज़ल मगर,
मेरे मिज़ाज का कोई भी क़ाफ़िया नहीं।
ढूँढोगे तुम तो चाँद से मिल जायेंगे, मगर,
"रोहित" सा इस जहाँ में कोई दूसरा नहीं।
रोहिताश्व…
Added by रोहिताश्व मिश्रा on January 14, 2017 at 5:00pm — 9 Comments
Added by रोहिताश्व मिश्रा on December 21, 2016 at 11:21am — 14 Comments
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