विश्व महिला दिवस - लघुकथा –
सुक्कू बाई आज फिर लेट हो गयी थी इसलिये डरते डरते मिसेज सिन्हा के घर में घुसी। सारा घर साफ़ सुथरा दिख रहा था। रसोईघर में सब वर्तन धुले हुए करीने से लगे थे। बाथरूम में देखा मैले कपड़ों का ढेर भी गायब था। लॉन में गयी तो देखा बाहर धुले कपड़े सूख रहे थे । उसने सोचा कि उसके रोज रोज लेट आने और नागा करने से परेशान होकर मैम साब ने दूसरी बाई रख ली।
मैम साब पूजा घर में थी। मैम साब बाहर निकली और सीधे रसोईघर में चली गयीं। थोड़ी देर बाद ट्रे में चाय और बिस्कुट लेकर निकलीं।
"ले सुक्कू, चाय पी"।
सुक्कू चाय पीते हुए लगभग निश्चित रूप से सोच ली कि आज उसका हिसाब हो जायेगा। इधर सुक्कू ने चाय खत्म की उधर मैम साब एक पैकेट और कुछ रुपये लेकर आ गयीं। सुक्कू को अब पूरा यक़ीन हो गया कि उसका पत्ता साफ हो गया। एक घर और कम हो गया। खर्चे बढ़ते जा रहे हैं और आमदनी घटती जा रही है। अब कल से एक नया घर ढूंढ्ना होगा।
"सुक्कू, कहाँ खो गयी।यह ले तेरा इनाम"?
सुक्कू को लगा कि हिसाब को मैम साब इनाम कह रही होंगीं।सुक्कू बाई की आँखों में आँसू आ गये।
"सुक्कू, आज क्या हो रहा है तुझे, रो क्यों रही है"?
"मैम साब बारह साल का साथ छूट रहा है, दुख तो होता ही है"।
"किससे छूट गया तेरा साथ"?
"आपसे, आपने मुझे काम से हटा कर नयी बाई रखली ना"।
"अरे पगली, तेरे जैसी बाई को भी कोई काम से हटा सकता है भला"।
"फिर यह सारा काम कौन किया"?
"मैंने किया और किसने"।
"पर आपने क्यों किया"?
"आज ‘ विश्व महिला दिवस’ है।मैंने सोचा अपनी सुक्कू को आज आराम दिया जाय और उसे सम्मानित किया जाय"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार । बहुत ही बढ़िया लघुकथा है । कितना अच्छा हो अगर महिलाएं हर दिन को महिला दिवस माने । बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता जी।
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आसिफ़ साहब जी।
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