एक स्टोर के अंदर हाथ में ब्लैक चेक्स शर्ट लेकर खड़ी ऋषिता अमन को दिखाकर पूछ रही थी- "ये रहा तुम्हारा मन पसंद कलर" ! अमन शर्ट को देखते हुए - "अरे इसकी क्या जरुरत थी ?, " हर बात की कोई जरुरत हो जरूरी भी नही "- अमन के चेहरे को देखकर मुस्कुराती हुई वो जवाब देती है! उसका अंतर्मन आज दुखी है परंतु अमन को कैसे बताये वो खुद को तोड़ देने वाली बात की "अब हमें बिछड़ना होगा", अब वक़्त आ गया है हमारे प्रेम को उसकी मंजिल तक पहुँचाने का"! प्रेम तो होता ही ऐसा है या तो मिलकर मुस्कुराते है या बिछड़कर मुरझाते है! न प्रेम कमजोर होता है न प्रेम प्रेमी !
अमन घर आते आते समझ चूका था के आज कुछ है जो हमें डरा रहा है, नजदीकियां बढ़ रही है लेकिन अनजाने भय का एक हिस्सा हमारे बीच आ ठहरा था आज ! वो ऋषिता से पूछता है - तुम कुछ छिपा रही हो !" "नही तो "- ऋषिता न जाने क्यू ये बोल जाती है उसे भी नही मालूम! "मेरा विश्वास और प्रेम इतना भी कमजोर नही की तुम्हारी अनकही परेशानी ना समझ पाउ!" बता दो जो भी है, खामोशिया अक्सर गलतफहमियां ला देती है - अमन ऋषिता का हाथ थामे कह रहा था!" " वक़्त आ गया है अब एक समझौता करने का", मुझे जाना होगा, हमारे ३ वर्ष के प्रेम को यही से एक नयी और दुखभरी राह देकर"- ऋषिता आँसूऔ को रोकने की नाकाम कोशिश करती हुई बोल रही थी! अमन- मगर क्यू ?, शायद तुम भूल गए हो मेने बताया था के मेरी कुछ मजबूरिया हमे शायद मिलने न दे उम्र भर के लिए"- ऋषिता के आंसू अब अविरल बह रहे थे ! " लेकिन बात क्या है?- अमन बोलता है, ऋषिता- मुझे घर जाना होगा, रिश्ता तय कर दिया उन्होंने मेरा, हमारा साथ यही तक लिखा था तकदीर ने, ,में अपने प्रेम को अपने माता पिता की ख़ुशी को रौंदकर नही पाना चाहती , और चाहते हुए भी उन्हें बता नही सकती!" अब समझौता ही एक राह बची है, क्युके हम इतने कमजोर नही की जीना छोड़ दे!" अमन बिखरा सा महसूस कर रहा था , वो टूट रहा था हर धड़कन के साथ लेकिन उसकी ख़ुशी तो ऋषिता की मुस्कान थी- " में जानता हु, तुम्हे मेरी कितनी फिक्र है, लेकिन तुम मेरी चिंता मत करो, वो करो जो तुम्हे सही लगे, जो तुम्हारे लिए सही हो ! मेरा प्रेम अगर तुम्हे जिंदगी भर के लिए तनाव दे, तुम्हारे पैरो की बेड़िया बन जाये तो किस काम का इस प्रेम ! में हिम्मत था तुम्हारी और वही रहना चाहता !
इससे बेहतर कुछ नही की " खोकर भी हमेशा के लिए पा लूंगा तुम्हे !"
ऋषिता उसके गले लगके अपने आंसुओ के गुबार को आजाद कर चुकी थी! ख़ामोशी और प्रेम का पवित्र अहसास हवाओ में बाह रहा था! अजीब है प्रेम की दास्ताँ भी जखम लेकर भी ख़ुशी ढूंढ ही ली! बिछड़ कर भी गहरे बसे थे एक दूसरे में !
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