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आओ सब मिल कर संकल्प करें।
चैत्र शुक्ल नवमी है आज, नूतन कुछ तो करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

मर्यादा में रहना सीखें, सागर से बन कर हम सब।
मर्यादा में रहना सिखलाएं, तोड़े कोई इसको जब।
मर्यादा के स्वामी की, धारण तो यह सीख करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

मात पिता गुरु और बड़ों की, सेवा का ही मन हो।
भIई मित्र और सब के, लिए समर्पित ये तन हो।
समदर्शी सा बन कर हम, सबसे व्यवहार करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

उत्तम आदर्शों को हम, जीवन में सभी उतारें।
कर चरित्र निर्माण स्वयं को, जग में आज सुधारें।
खुद उत्तम बन कर हम, पुरुषोत्तम को 'नमन' करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 7:03am

आदरनीय वासुदेव भाई , सुन्दर संदेश देती , आशा का संचार करती इस गीत रचना के लिये हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 6, 2017 at 11:44am
आ0 मोहम्मद अरिफजी आपसे इस गीत को सराहना मिली लिखना सार्थक हुआ। बहुत आभार।
Comment by Mohammed Arif on April 5, 2017 at 10:03pm
आदरणीय वासुदेव अग्रवाल जी आदाब, बहुत सुंदर आशावादी दृष्टिकोण का संचार करती रचना है । आज हमारे समाज में आदर्शों की कमी है । नई पीढ़ी के पास तो नव आदर्शों का अकाल है । ख़ैर, बहुत-बहुत बधाई ।

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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