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आदरणीय वासुदेव जी गजल का बढि़या प्रयास हुआ है मुबारक हाजिर है । आदरणीय तस्दीक जी ने बहुत अच्छी तरह से व्याख्या कर दी है जिससे गजल को निश्चित लाभ होगा । सादर ।
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० बासुदेव अग्रवाल जी ,बाकी काफिया बंदी पर आद० तस्दीक जी का सुझाव एक दम दुरुस्त है यदि आप ए स्वर वाला भी काफिया करना चाहेंगे तो सब अशआर के काफिया बदलने पड़ेंगे क्योकि सब में अंत में ते आया हुआ है इस लिए तस्दीक जी के सुझाव से बेहतर कोई सुझाव नहीं होगा आपको देल से बहुत बहुत मुबारक बाद |
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० बासुदेव अग्रवाल जी ,बाकी काफिया बंदी पर आद० तस्दीक जी का सुझाव एक दम दुरुस्त है यदि आप ए स्वर वाला भी काफिया करना चाहेंगे तो सब अशआर के काफिया बदलने पड़ेंगे क्योकि सब में अंत में ते आया हुआ है इस लिए तस्दीक जी के सुझाव से बेहतर कोई सुझाव नहीं होगा आपको देल से बहुत बहुत मुबारक बाद |
मुहतरम बासुदेव साहिब , ग़ज़ल का कामयाब प्रयास किया है आपने , बस क़ाफ़िए चुनने में
चूक हो गई है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---'' चलते '' क़ाफ़िया लें तो शेर 6 सही है बाक़ी मैं
ने शेर दुरुस्त करने की कोशिश की है ,अगर ठीक लगें तो रख लीजिएगा ---
जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा |
हिम्मत का पंखा कष्ट में झलते चलो तुम सर्वदा \
अंजान सी हर राह है मंज़िल कहीं दिखती नहीं
पैरों में मरहम चाल का मलते चलो तुम सर्वदा |
बीते हुए से सीख लो जो आए उसको थाम लो
नुसरत भरे साँचे में ही ढलते चलो तुम सर्वदा |
बहता निरंतर जो रहे गंगा सा निर्मल वो रहे
जो मुश्किलें आएँ उन्हें छलते चलो तुम सर्वदा |
मासूम कितने रो रहे अबला यहाँ नित लुट रहीं
दुखियों के दिल में प्रेम सा पलते चलो तुम सर्वदा|
जो देश हित में प्राण दे सर्वस्व न्योछावर करे
उसको नमन करके नमन फलते चलो तुम सर्वदा \
नुसरत ----कामयाबी
सादर ----
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