For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल(जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा)

बह्र-- 2212 2212 2212 2212

जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा,
राहों में आए कष्ट जो सहते चलो तुम सर्वदा।

अनजान सी राहें तेरी मंजिल कहीं दिखती नहीं,
काँटों भरी इस राह में हँसते चलो तुम सर्वदा।

बीते हुए से सीख लो आयेगा उस को थाम लो,
मुड़ के कभी देखो नहीं बढ़ते चलो तुम सर्वदा।

बहता निरंतर जो रहे गंगा सा निर्मल वो रहे,
जीवन में ठहरो मत कभी बहते चलो तुम सर्वदा।

मासूम कितने रो रहे अबला यहाँ नित लुट रही,
दुखियों के मन मन्दिर में रह बसते चलो तुम सर्वदा।

इस जिंदगी के रास्ते आसाँ कभी होते नहीं,
तूफान में भी दीप से जलते चलो तुम सर्वदा।

जो देश हित में प्राण दे सर्वस्व न्योछावर करे,
ऐसे इरादों को 'नमन' करते चलो तुम सर्वदा।

Views: 935

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on April 7, 2017 at 2:04pm

आदरणीय वासुदेव जी गजल का बढि़या प्रयास हुआ है मुबारक हाजिर है । आदरणीय तस्‍दीक जी ने बहुत अच्‍छी तरह से व्‍याख्‍या कर दी है जिससे गजल को निश्चित लाभ होगा । सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2017 at 6:51pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० बासुदेव अग्रवाल जी ,बाकी काफिया बंदी पर आद० तस्दीक जी का सुझाव एक दम दुरुस्त है यदि आप ए स्वर वाला भी काफिया करना चाहेंगे तो सब अशआर के काफिया बदलने पड़ेंगे क्योकि सब में अंत में ते आया हुआ है इस लिए तस्दीक जी के सुझाव से बेहतर कोई सुझाव नहीं होगा आपको देल से बहुत बहुत मुबारक बाद |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2017 at 6:51pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० बासुदेव अग्रवाल जी ,बाकी काफिया बंदी पर आद० तस्दीक जी का सुझाव एक दम दुरुस्त है यदि आप ए स्वर वाला भी काफिया करना चाहेंगे तो सब अशआर के काफिया बदलने पड़ेंगे क्योकि सब में अंत में ते आया हुआ है इस लिए तस्दीक जी के सुझाव से बेहतर कोई सुझाव नहीं होगा आपको देल से बहुत बहुत मुबारक बाद |

Comment by Samar kabeer on April 5, 2017 at 3:01pm
तस्दीक़ भाई ने बहुत अच्छे सुझाव दिए हैं,अगर उनके बताए मिसरे आप नहीं रखना चाहते तो,उनके सुझाये क़ाफ़ियों को लेकर प्रयास कर सकते हैं ,यही एक उपाय है क़ाफ़िए सही करने का ।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 5, 2017 at 11:55am
आ0 तस्दीक अहमद खान साहिब आपका बहुत बहुत आभार। आपके सारे ही सुझाव बहुत ही मेहनत से किये हुए उत्तम सुझाव है। आपका हृदय तल से आभार।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 5, 2017 at 11:52am
आ0 सुरेन्द्र नाथ सिंह जी बहुत आभार।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 5, 2017 at 11:51am
आ0 मोहम्मद आरिफजी आपकी प्रोत्साहन से भरी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 4, 2017 at 9:13pm

मुहतरम बासुदेव साहिब , ग़ज़ल का कामयाब प्रयास किया है आपने , बस क़ाफ़िए चुनने में
चूक हो गई है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---'' चलते '' क़ाफ़िया लें तो शेर 6 सही है बाक़ी मैं
ने शेर दुरुस्त करने की कोशिश की है ,अगर ठीक लगें तो रख लीजिएगा ---
जीवन पथिक संसार में चलते चलो तुम सर्वदा |
हिम्मत का पंखा कष्ट में झलते चलो तुम सर्वदा \

अंजान सी हर राह है मंज़िल कहीं दिखती नहीं
पैरों में मरहम चाल का मलते चलो तुम सर्वदा |

बीते हुए से सीख लो जो आए उसको थाम लो
नुसरत भरे साँचे में ही ढलते चलो तुम सर्वदा |

बहता निरंतर जो रहे गंगा सा निर्मल वो रहे
जो मुश्किलें आएँ उन्हें छलते चलो तुम सर्वदा |

मासूम कितने रो रहे अबला यहाँ नित लुट रहीं
दुखियों के दिल में प्रेम सा पलते चलो तुम सर्वदा|

जो देश हित में प्राण दे सर्वस्व न्योछावर करे
उसको नमन करके नमन फलते चलो तुम सर्वदा \

नुसरत ----कामयाबी
सादर ----

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 4, 2017 at 6:39pm
आ0 समर साहिब आप ही कोई सुझाव दें कि मतले में क्या परिवर्तन किया जाय जिससे 'ए' स्वर का काफ़िया बंधे और आगे के शेर ऐसे ही रहें। या कोई परिवर्तन न कर ईता का दोष यूं ही छोड़ दें। ईता का दोष भी तकाबुले रदीफ़ जैसा ही है तो मैं इस रचना में कोई परिवर्तन करना नहीं चाहता। लेकिन आगे सीखने की ललक है कि आगे की रचनाओं में ऐसी गलती ओर न हो। आपका बहुत बहुत आभार कि आपने इस रचना की गहराई में जा कर यह कीमती इस्लाह दी। सादर।
Comment by Samar kabeer on April 4, 2017 at 6:09pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,बह्र वग़ैरह सब ठीक है,लेकिन जैसा कि जनाब निलेश जी ने बताया क़ाफ़िया बन्दी ठीक नहीं है,आपने जब मतले के ऊला मिसरे में 'चलते'क़ाफ़िया लिया तो आगे आपको 'जलते','मलते'क़ाफ़िए लेना थे,जो नहीं हैं,अब आपका क़ाफ़िया है 'ते'तो 'चलते'में हर्फ़-ए-रवी हुआ 'ल' जो आगे आने वाले क़ाफ़ियों में नहीं है,अब आप अगर मिसरा जैसा कि आपने लिखा है :-
'राहों में जो भी कष्ट हैं,सहके चलो तुम सर्वदा'
रखेंगे तो आगे तो सभी क़ाफ़िए 'ते'के साथ हैं वो भी बदलना होंगे ।
ग़ज़ल आपकी बहुत उम्दा है, इसके लिये बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service