ग़ज़ल
फ ऊलन -फ ऊलन- फ ऊलन- फ ऊलन
.
ये हसरत मुकम्मल कभी हो न पाई।
मिले वह मगर दोस्ती हो न पाई ।
मुलाक़ात का सिलसिला तो है जारी
मगर इब्तदा प्यार की हो न पाई ।
त अज्जुब है बदले हैं महबूब कितने
मगर काम रां आशिक़ी हो न पाई।
गए वह तसव्वुर से जब से निकल कर
खुदा की क़सम शायरी हो न पाई ।
करें नफ़रतें भूल कर सब मुहब्बत
अभी तक ये जादूगरी हो न पाई ।
मुसलसल वो करते रहे बे वफाई
मगर हम से यह दिल लगी हो न पाई।
फ़क़त गम ये तस्दीक़ है जाते जाते
मुलाक़ात उनसे मेरी हो न पाई।
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय तस्दीक भाई , बेहतरीन गज़ल कही है आपने ... हार्दिक बधाइयाँ प्रेषित हैं ...स्वीकार करें ।
आदरणीय रवि शुक्ला तहे दिल आभार आपके द्वारा दी गयी जानकारी के लिए.......
आदरणीय मनिन्दर जी जहा तक आपकी शंका का प्रश्न है किसी मिसरे का पहला हर्फ नही वरन किसी लफ्ज का आम तौर पर पहला हर्फ नहीं गिराया जाता । पर इसमे भी कुछ अपवाद है जैसे मेरे तेरे कोई आदि इनमें कोई एक या दाेनो साथ मे गिराए जा सकते है । इसी पटल पर गजल की कक्षा और गजल की बाते दो आलेख है उनको पढ लीजिये बहुत आसानी हो जाएगी ।
आदरणीय तसदीक साहब आदाब बहुत अच्छी गजल कही आपने अच्छा लगा पढकर दिली दाद और मुबारक बाद कुबूल करें ।
जनाब मनिंदर साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का
बहुत बहुत शुक्रिया ------जहाँ तक मेरी जानकारी है एसा कोई नियम नहीं है
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही आप ने सर........मेरा एक सवाल है सर आप से....मैंने ग़ज़ल थोड़ी बहुत जो सीखी है वो पूछ पूछ कर ही आप जैसे गुणीजनों से पूछी है......इसलिए आप मेरी बात का बुरा मत मानियेगा.....सर आप के पहले मिसरे में ये को वजन वजन गिरा कर लिखा है....पर जहाँ तक मुझे बताया गया की आप किसी भी मिसरे के पहले लफ्ज़ को मात्रा गिरा कर नहीं लिख सकते है.....आप ने निवेदन है की इस नासमझ को अपनी राय दे....धन्यवाद सर ....
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