माना तेरा परिचय रूप है श्रंगार है.. पर,
मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है |
सब पीर हैं तुझसे तृषित संसार की..
पर कैद सीने मे तेरे भी सहन का भण्डार है |
तू मूर्त है अभिमान की और गर्व भी अपार है,
तोड़ पैरों की बेड़ियाँ ये तेरा भी संसार है |
प्रेम की ओढ़े चुनरिया तू त्याग का गुबार है,
मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है ||
गर जमीर तेरा साफ है तो जरूरत नही प्रमाण की,
कि दर्द तेरा हार और परिस्थिति श्रंगार है |
दुनिया ने देखी है तेरी सौंदर्य की सुरम्यता,
चल दिखा दे आज उनको छिपी तुझमें भी कटार है |
चाहें लाख माने ये दुनिया कि तू छाया है पुरूषत्व की,
पर देख अपने हाथ मे त्रिशूल को, तू शेर पे सवार है|
छाती से उठती चीख को आवाज देने मे कोई हर्ज नहीं,
बयां करने का हक है तुझको,आखिर तू भी इक इंसान है |
मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है ||
वक्त की ये असंख्य जंजीरे पांव से लिपटीं रहेंगी ,
पिघाल के जब अस्त्र इनको बना ले,वहीं तेरा सम्मान है |
न बैठ किसी की आड़ में बचने को वहशी संसार से,
सामने आ संघर्ष कर कि खुद को तेरे वजूद की तलाश है |
बराबरी करने का हक तुझको भी है ,औरों को भी ,
फिर क्यूं करने त्याग को ..पीछे पड़ा तेरे संसार है |
आ रही हर चुनौती का हाथों से दोनों सत्कार कर ,
सोचे जिसे जो सोंचना है, सोंच पर उनकी तुझे धिक्कार है ||
माना तेरा परिचय रूप है श्रंगार है.. पर,
मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है ||
#विवेक_कुमार
April 10, 2017
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरनीय विवेक भाई , सुन्दर भाव अभिव्यक्ति हुई है , बधाई । लेकिन इस रचना को किस विधा के सापेक्ष रख कर बात करें .. समझ नही आया ।
अच्छी भावाभिव्यक्ति है
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