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ग़ज़ल : भ्रष्टाचार की आंधी तेज है इस कदर की.................

यहाँ कुछ नहीं मिलता है,उल्फत की किरदार में.
खूब मुनाफा हो रहा है, नफरत के कारोबार में.

सत्य अहिंसा की बाते महज एक छलावा है..
सच खड़ा है सर झुकाए झूठों  के बाज़ार में.

आज लूटेरे पढ़ा रहे है नैतिकता की पाठ,
सड़ रहे है बेगुनाह,जुल्मी बन के कारागार में. 

रो रहा है देश का पैसा स्विस बैंक के लाकर में,
वतन  की कश्ती को नेता ला दिए मझधार में.

"नूरैन" भ्रष्टाचार की आंधी तेज है इस कदर की,
उड़ जाते है कितने अन्ना-बाबा,इसकी तीब्र रफ़्तार में.

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