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तब से मेरी भारत माँ, बदहाल बहूत हैं.
मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत…
Posted on May 3, 2013 at 4:00pm — 14 Comments
दो कदम ही सही साथ,चलकर के देखों.
हम गरीबों की हालात, चलकर के देखों.
ऊँचे महलों से बारिस का मज़ा लेनेवालों,
तंग गलियों की बरसात,चलकर के देखों.
संसद के सोफे क्या समझेगे गावों का मर्म,
बेबस जनता की मुश्किलात,चलकर के देखों.
सुहागन से सदा बेवा का दर्द जाननेवालों,
कभी बिरह में एक रात, जलकर के देखों.
झूठे कसमों से इन्तखाब जीत जानेवालों,
छली जनता का जज्बात,चलकर के देखों.
ऐशों-आराम तय करते है मुकद्दर किल्लतों का,
सता से बाहर अपनी…
Posted on November 22, 2012 at 3:13pm — 4 Comments
आमदनी घट रही है,होंठों से मुस्कान की तरह.
और खर्चे बढ़ रहे है, चौराहे पे दूकान की तरह.
भले ही रहते है यारों हम आलीशान की तरह.
पर हालत हो गयी है अपनी भूटान की तरह.
अरे किस से सुनाये दर्द,जब सबका यही हाल है.
ये बेबस जिंदगी उधार की,बस जी का जंजाल है.
बड़ी मुश्किल से लोग,हंसने का रस्म निभाते है.
वरना चुटकुले भी आँखों में आंसू भर के जाते है.
खुशिया लगती है सुनी,मातम के सामान की तरह.
और हालत हो गयी है अपनी, भूटान की तरह.
महंगाई के…
Posted on September 27, 2012 at 9:30am — 6 Comments
आज लड़ रहे है भाई-भाई,बन के हिन्दू मुसलमान.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.
काबा और कैलाश के रोज मुद्दे उछल रहे है.
इनके आंच पे गावं-नगर-कसबे जल रहे है.
सिसक रही है इंसानियत,खोकर अपना आत्मसम्मान.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.
इस्मत लूटी जा रही है,सरेआम आज नारी की.
बढ़ रही है रोज आबादी, गुंडे बलात्कारी की.
बेबस लाचार जनता की,बड़ी मुश्किल में है प्राण.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.…
Posted on August 22, 2012 at 8:00am — 1 Comment
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
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