For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल: पूछने पे अगर आये तो सवाल बहूत है.

पूछने पे अगर आये तो सवाल बहूत है.
तेरे काले करतूतों की मिशाल बहूत है.

सियासत तूने जबसे गोद ली बेईमानों कों,

तब से मेरी भारत माँ, बदहाल बहूत हैं.

 

हमारी वोट से तुम नोट का बिस्तर सजाते हो,
हमारी सब्र और तुम्हारे ऐश के 5 साल बहूत है

बेबस,मजलूमों के आहों का सौदा करनेवालों,

मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है

 
रोती है वतन की मिट्टी,बेदर्द रहनुमा निकला,
जम्हूरियत को अपने फैसले पे मलाल बहूत है.
 
 
 
 

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 839

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Noorain Ansari on May 9, 2013 at 12:21pm
आप सभी लोगो को मेरा सादर आभार ।
आप लोगों के बहुमूल्य टिप्पणी,ज्ञानबर्धक सुझाव और कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप काफी कुछ मुझे सिखने को मिला
भविष्य में इस तरह की गलतियों दुबारा से न हो और मेरी रचना ग़ज़ल की कसौटी पर खरी उतरे इसके लिए मैं पूरी तरह आप सब के सुझाये निर्देशों के प्रति समर्पित रहूँगा

गरूवर सौरभ जी और मित्रवर वीनस जी से मैंने पूर्व में भी बहूत कुछ सीखा है और ये प्रक्रिया निरंतर जारी रहेगी आप दोनों के अपार स्नेह के प्रति मन सदा ऋणी रहेगा

Comment by यशोदा दिग्विजय अग्रवाल on May 6, 2013 at 11:21am

सौरभ भाई.....
वन्दन
मैंनें मात्र एक जगह सुधारा है

मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है

सुधारी हुई पंक्ति ये है

"मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहुत है"

मैंने बहूत को बहुत  लिखा है...बाकी ज्यों का त्यों है

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2013 at 10:53am

आदरणीया यशोदा जी, ’तह संज्ञा का स्त्रीलिंग प्रारूप व्यवहृत होता है. अतः आपकी सुधारी गयी पंक्ति का वास्तविक रूप यों होगा -

मजबूर खामोशियों की तह में भूचाल बहुत हैं.

सादर

 

Comment by यशोदा दिग्विजय अग्रवाल on May 6, 2013 at 10:37am

ज़नाब अंसारी भाई जान

बेहतरीन ग़ज़ल पेश की आपने

मैं इस काबिल तो नहीं कि कुछ कह सकूँ

फिर भी कहूँगी हिन्दी में मात्राओं का महत्व बड़ा होता है

उदाहरण प्रस्तुत है आप ही की रचना में

"बेबस,मजलूमों के आहों का सौदा करनेवालों,

मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है"

दूसरी लाईन को सुधार कर लिख रही हूँ

"मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहुत है"

अक्सर रोमन अंग्रेजी में हिन्दी के शब्दों की मात्राओं में फेर-बदल हो जाया करती है

गलती आपकी कतई नहीं है......इसे मैं टंकण की गलती मानती हूँ

आलोचक नहीं हूँ मैं....पर हिन्दी से बहुत प्यार है मुझे

क्षमा याचना सहित

यशोदा

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 2:52pm

सियासतदारों के प्रति नाराजगी प्रदर्शित करती सुन्दर गजल आदरणीय अंसारी जी.वरिष्ठ जनो की सलाह पर अमल कर गजल के निखार को बढाने का प्रयास करें.सादर.सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on May 5, 2013 at 7:04am

आदरणीय आपका प्रयास प्रशंसनीय है। आपने जो भाव पिरोया है वह बहुत सुन्दर है। बधाई!
गुरूजनों से जो मार्गदर्शन मिला है उसका लाभ उठाएं। हम सबके साथ आप भी सीखें।
सादर!

Comment by shalini rastogi on May 4, 2013 at 10:13pm

Noorain Ansari साहब , आखिरी दोनों अश'आर बहुत भावपूर्ण लगे ...पर गज़ल में शाब्दिक व व्याकरणिक अशुद्धियाँ  दिखाई दीं. ... जैसे - मिशाल नहीं मिसाल , बहूत नहीं बहुत, सियासत तूने जबसे गोद ली बेईमानों कों.... नहीं ....सियासत तूने जबसे गोद लिया बेईमानों कों, हमारी वोट ....की जगह... हमारे वोट ,  हमारी सब्र नहीं हमारा सब्र ..... कृपया इन अशुद्धियों पर भी ध्यान दें| बाकी बहर वगैरह के बारे में तो मुझे भी नहीं पता|

Comment by वीनस केसरी on May 4, 2013 at 2:51pm

नूरैन साहब,
ग़ज़ल पढ़ने के बाद देखा कि जो कहना है उसे पहले ही अन्य लोग कह चुके हैं 
सौरभ जी और सीमा अग्रवाल जी के कहे पर ध्यान देने की जरूरत है ...

सादर शुभकामनाएं 

Comment by seema agrawal on May 4, 2013 at 2:25pm

प्रयास अच्छा लगा ...रचना पोस्ट करने से पूर्व टंकण को भी सुनिश्चित अवश्य करिए ...बार बार बहुत को बहूत  पढ़ना खल रहा है 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 4, 2013 at 1:57pm
बेबस,मजलूमों के आहों का सौदा करनेवालों,

मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है

इससे सहमत परन्तु मलाल कुछ देश भक्तों को ही  है. आगे देखिये फिर संख्या से पता चल जायेगा. हाँ इस बात का मलाल जरूर है की कैसे राष्ट्रिय चरित के लोगों को आगे ला पायेंगे.

सादर बधाई , सर जी . 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय, 'नूर साहब, ग़ज़ल लेखन पर आपके सिद्धहस्त होने से मैंने कब इन्कार किया। परम्परागत ग़ज़ल…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय अजेय जी,  आपकी छंद-रचनाएँ शिल्पबद्ध और विधान सम्मत हुई हैं.  सर्वोपरि, आपके…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"योग ****    छोटी छोटी बच्चियाँ, हैं भविष्य की आस  शिक्षा लेतीं आधुनिक, करतीं…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई इस ग़ज़ल के लिए।  "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि शुक्ल भैया,आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।"
Thursday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
Tuesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service