काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
घबडाते नहीं है अब हम तो गम के आने-जाने से.
हाँ,चौक जरूर जाते है खुशियों के झलक दिखाने से,
अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट गये.
अब तो बदनामों से ज्यादा मक़बूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
अफ़सोस,ये जिंदगी दुनिया के रंग में हम ऐसे घूल गये.
जिसके खातिर भूला तुझको वो मुझको भूल गये.
रहते थे जो कल तलक एक साए की तरह
आज देखते है मुझे दूर से पराये की तरह.
डूबी कश्ती को सागर के हर,बुलबुलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
Comment
काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
वाह नुरैन भाई वाह, बहुत ही खुबसूरत गीत आपने प्रस्तुत किया है, बहुत ही उम्द्दा ख्याल है, बहुत बहुत बधाई नुरैन भाई |
अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट गये.
bahut khubsurat lagta hai ye aap ne hmare liye likh hain
bahut sundar geet. aaj ke jiwan ki hakikat hai.
अब तो बदनामों से ज्यादा मक़बूलों से डर लगता है.
ye pankti wakai bahut achchhi hai.
bahut-bahut badhai.
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