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गीत: काँटों से नहीं मुझको तो,फूलों से डर लगता है..........................

काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.


घबडाते  नहीं है  अब हम तो  गम के आने-जाने से. 
हाँ,चौक जरूर जाते है खुशियों के झलक दिखाने  से,
अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट  गये.

 

अब तो बदनामों से ज्यादा  मक़बूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है. 

 

अफ़सोस,ये जिंदगी दुनिया के रंग में हम ऐसे घूल गये.
जिसके खातिर भूला तुझको वो मुझको भूल गये.
रहते थे जो कल तलक एक साए की तरह
आज देखते है मुझे दूर से पराये की तरह.

 

डूबी कश्ती को सागर के हर,बुलबुलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.

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Comment

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Comment by Noorain Ansari on August 9, 2011 at 11:05am
रवि जी........
बहूत बहूत धन्यवाद..हौसला अफजाई के लिए,,,
हम तो आपके भोजपुरी कविताओं के बहूत बड़े दीवाने है.................
Comment by Noorain Ansari on August 9, 2011 at 11:05am
गणेश जी प्रणाम,
बहूत बहूत धन्यवाद, आप ने अपने अनमोल शब्दों से मेरी हौसला अफजाई की..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 6, 2011 at 9:55am

काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.

 

वाह नुरैन भाई वाह, बहुत ही खुबसूरत गीत आपने प्रस्तुत किया है, बहुत  ही उम्द्दा ख्याल है, बहुत बहुत बधाई नुरैन भाई |

Comment by Rash Bihari Ravi on August 5, 2011 at 1:41pm

अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट  गये.

bahut khubsurat lagta hai ye aap ne hmare liye likh hain

Comment by Noorain Ansari on August 5, 2011 at 12:22pm
आशीष जी..
बहूत बहूत धन्यवाद..हौसला अफजाई के लिए....
Comment by आशीष यादव on August 4, 2011 at 10:16pm

bahut sundar geet. aaj ke jiwan ki hakikat hai.

अब तो बदनामों से ज्यादा  मक़बूलों से डर लगता है.

ye pankti wakai bahut achchhi hai.

bahut-bahut badhai.

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