For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता : अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.

अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.

रोते-बिलखते लोगों को फिर एक बार हंसाये हम.

जो अब तक सही आजादी  पाने  से महरूम है.

जो अपने घर में आज भी बेबस लाचार मजलूम है.

स्वतंत्र देश में जकड़े है जो गुलामी की जंजीरों से.

खेलते है देश के नेता जिनके मासूम तकदीरों से.

जो तन्हा भूखे-नंगे सोते है आसमान के नीचे.

उनके बंजर चेहरों को आओ मिलकर सींचे.

उनके रहने खातिर एक आशिया बनाये हम. 

अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.

उखाड़ फेके जड़-मूल  से भ्रष्टाचार  की आंधी को.

अब और कलंकित न होने दें नेहरु नेता गांधी को.      

गूँज रहा है आज देश घोटालों के नारों से.

मुक्ति दिलाये राष्ट्र को इन बुजदिल गद्दारों से.

बीर शहीदों की कुर्बानी   यूँ  बेकार ना होने दे.

बहूत हो गया भारत माँ को अब और ना रोने दे..

आओ शोषण,भय,भूख को मिलकर के मिटाए हम.                                 

अबकी बार आजादी कुछ इसतरह  मनाये हम.

Views: 482

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Noorain Ansari on August 19, 2011 at 12:08pm
सौरभ जी/शनो जी.. प्रणाम,
बहूत बहूत धन्यवाद आप जैसे शख्सियत का कमेन्ट पाना मेरे  लिए सौभाग्य की बात है..
बस आप सब का नेह छोह और प्यार अशिर्बाद बना रहे येही मेरी भगवान से प्रार्थना  है..
Comment by Shanno Aggarwal on August 16, 2011 at 1:51am

नुरेन जी, बहुत भावपूर्ण रचना...शुक्रिया.

 

''वीर शहीदों की कुर्बानी   यूँ  बेकार ना होने दे.

बहूत हो गया भारत माँ को अब और ना रोने दे..

आओ शोषण,भय,भूख को मिलकर के मिटाए हम.                                 

अबकी बार आजादी कुछ इसतरह  मनाये हम.''


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 15, 2011 at 6:14pm

नुरैन भाई की भावनाओं को बहुत शान्दार अभिव्यक्ति मिली है.

अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम... आमीन.

 

Comment by Noorain Ansari on August 15, 2011 at 11:13am
बागी जी बहूत बहूत धन्यवाद और आपको भी स्वतंत्रा दिवस की हार्दिक शुभकामनाये..........
आपका उत्साहबर्धक और बहुमूल्य कमेन्ट हमारी टूटी फूटी लेखनी के लिए संजीवनी बूटी के तरह  काम करता है..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 15, 2011 at 10:47am

नुरैन भाई बहुत ही खुबसूरत देशभक्ति कविता आपने प्रस्तुत किया है, बहुत बहुत बधाई और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामना स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service