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ज़िंदगी.

मे ये नही जानता शायरी क्या होती है, ग़ज़ल क्या होती है. गीत क्या होता है. सिर्फ़ मे वो लिखता हू जो मे महसूस करता हू. अपने एहसासो को कागज पर लिख के पोस्ट कर रहा हू. तकनीकी ग़लतियो के लिए माफी चाहता हू और आदरणीय योगराज जी, अंबरीषजी,धर्मेन्द्र जी और तिलक राज जी,गणेश जी से ये मेरी गुज़ारिश है की, वो अपने कीमती समय का कुछ पल मेरी इन पंक्तियो को दे कर तकनीकी ग़लतिया मुझे बताए.....इसके अलावा हिन्दी लिखने के  Tool से मे पूरी तरीके से परिचित नही हू इसलिए जानकर्  भी अपनी मात्रा  की ग़लतियो को सुधार नही पाया हू इसके लिए भी....मुझे माफ़ करिएगा


 

भँवरो को फूलों से मिलाती है ज़िंदगी.
मोहब्बत का एहसास दिलाती है जिंदगी.


यूं ही नही मिलती मंजिले सबको,
रास्ते मे ठोकर भी खिलाती है जिंदगी.

मैं मर जाऊँ तो बता केसे मर जाऊँ.
ज़िम्मेदारी मेरी मुझे बुलाती है जिंदगी.

 

-    तपन

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Comment by Tilak Raj Kapoor on June 7, 2011 at 4:17pm

आपने ये ग़ज़ल किसी ग़ज़ल को आधार बना कर कही या यूँ ही।

आरंभ में किसी ग़ज़ल को आधार बनाने से लाभ यह होगा कि एक निश्चित मीटर (बह्र) आपके सामने रहेगा।

'दिलाती है जिंदगी' आदि का वज्‍़न तो हुआ 1222 212 यानि फ़ायलातुन, फ़ायलुन।

आप 1222, 1222, 1222, 212 यानि फ़ायलातुन, फ़ायलातुन,फ़ायलातुन,फ़ायलुन। के मीटर पर इसे फिर से कोशश करके देखें।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 7, 2011 at 9:25am

तपन जी, भाव अच्छे है, रदीफ़ काफिया की समझ भी बन रही है, तिलक सर की कक्षा में प्रस्तुत पाठ का अध्ययन करे, मुझे पूरा विश्वास है की आप एक दिन अच्छी ग़ज़ल कहेंगे |

बहुत बहुत बधाई इन खुबसूरत शेरों के लिए |

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