एक नवगीत
दूर बैठ कर पूछें दद्दा,
और सुना, क्या हाल-चाल है.
कैसे कह दूं, ठीक-ठाक सब,
मस्त हमारी चाल-ढाल है
तोड़ रहे हैं सभी आजकल,
अपना नाता गाँधी से.
सपनों की कंदीलें उनकी,
बचा रहा हूँ आँधी से.
बाँधे मुकुट झूठ बैठा है,
सच की गलती नहीं दाल है
आशाओं के स्वर कम्पित हैं,
फैली है चहुँ ओर निराशा.
शकुनी बैठा फैंक रहा है,
हँस-हँस रोज नया पाशा.
पाँचों पाण्डव चुप चुप बैठे,
फैला भ्रम का मकड़जाल है.
उफन रहीं है यहाँ नालियाँ,
नालों का भी हाल बुरा है.
मंदिर मस्जिद के बाजू में,
गली गली उपलब्ध सुरा है
नए नए रोगों के दम पर,
खाता-पीता अस्पताल है
राम राज्य आने वाला है,
मैं हर रोज सुना करता हूँ
दोष किसे दूँ तुम्हीं बताओ.
खुद सरकार चुना करता हूँ.
पहले जैसा ही हो जाता,
आता जो भी नया साल है.
"मौलिक एवं अप्रकाशित "
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