For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वक्त की बात(व्यंग्य के निमित्त)

रात अपनी जवानी पर थी,चाँद अपने शबाब की ऊँचाई पर।साँसों में असहास कायम था।झक शीतल रोशनी में रात सिहरती,शरमाती।चाँद खिलखिलाता,और खिलखिलाता। यह क्रम ज्यादा देर तक नहीं चला।अरे यह क्या!वक्त की निस्तब्धता भंग होती -सी लगी। कहीं से किसी अज्ञात पक्षी ने पंख फड़फड़ाये।शायद अकस्मात् नींद से जगा हो।कहीं नींद में ही सबेरा न हो जाये,इसलिए आकुल हो शायद। रात अपना काला दुपट्टा समेटने लगी।चाँद को यह नागवार लगा।उसकी चाहत अभी परवान चढ़ी ही कहाँ!सबेरा होने की शुरुआत इतनी जल्दी क्यूँ हो जाती है भला?बिलकुल सुख के क्षणों की तरह,सत्ता के मधुमय दिनों की तरह यह सब इतनी जल्दी क्यूँ हो जाता है,चाँद सोचने लगा। उसने रात का दामन न छोड़ने की ठान ली।रात अब ज्यादा लजाने लगी थी।उसका चेहरा सुर्ख हो चला।उसने चाँद के हाथों से अपना पल्लू झटकना चाहा,पर उसका रुआँसा चेहरा देख वह थोड़ा ठमक गयी,समझाने के अंदाज में बोली-
-अरे मेरे प्यारे चाँद!तू समझता क्यों नहीं?हर बार तेरी यही दशा क्यों हो जाती है?
-क्या करूँ?दिल बेकाबू हो जाता है।सुख का परित्याग कोई करता है भला?बताओ तो जरा।
-तू भी न। अरे भोले ,यह त्याग कहाँ हुआ?यह तो काल क्रम है।दिन के बाद रात,फिर रात के बाद दिन।यह तो हमारे मिलन की प्रतीक्षा है पगले!
-पर मेरा जी नही लगता ऐसी प्रतीक्षा में।
-सुनो,प्रतीक्षा तो बड़े-बड़े ऋषियों ने की।उन्होंने युगों-युगों तक तपस्या की,इच्छित फल हेतु प्रतीक्षा की।और तू एक दिन के लिए अपनी रात को अलविदा नहीं कह सकता?रात जायेगी,तभी तो उजाला आयेगा।कर्म और ज्ञान की ज्योति बिखरेगी।तू कब समझेगा यह सब?
-फिर मुझे कौन मान देगा?सब प्रकाश को पूजने लगेंगे।तेरा चाँद उस चकाचौंध में खो जायेगा,रानी।
-इसीलिए तो कहती हूँ।छुप जा कहीं,मेरे आने तक।देखता नहीं,सरकारी नौकरियों से लोग अवकाश ग्रहण करते हैं।थोड़ा अखरता है शुरू में,फिर सब ठीक हो जाता है।हाँ,राजनीति वगैरह में पहले अवकाश ग्रहण का प्रावधान नहीं किया गया था।वैसे भी रणनीति पहले लोक सेवा का सबब थी,अब स्व सेवा का पर्याय है।ढ़ेर सारे लोग इधर मुखातिब होने लगे हैं।या यूँ कहें तो कुनबा का कुनबा अब राजनीति में स्थापित होने लगा है।महत्वाकांक्षाएँ अँगड़ाई लेने लगी हैं।वरीयता,भ्रातृत्व,पितृत्व,ताऊ पन जैसे बेहद पुरातन और शास्त्रीय लफ्ज अब अपने भाव खोने लगे हैं।देखते ही देखते कोई विराट व्यक्तित्व अपने आभामंडल से भटक जाता है,या वंचित कर दिया जाता है।
-सो तो है,रजनी।
अबतक प्राची की गोद भरने लगी थी, रोशनी का अवतार होने लगा था।पंछी विरुदावली में व्यस्त थे।रात अपना आँचल समेटकर जा चुकी थी।चाँद रह गया था अकेला,निरुपाय,निस्तेज। अपनी सत्ता से च्युत वह आजतक सूर्य की गर्मी में झुलस रहा है।समय से न चेतना उसकी चेतना को लहूलुहान कर रहा है।सोचता है,मेरी रजनी भी न, खूब उतारा दिया करती है।कहती है , राजनीति में भी लोग बेदखल किये जाने लगे हैं अब।मैं कहता हूँ, आदमी फिर भी आदमी है।वह बुद्धिजीवी ऐसे ही नहीं कहा जाता।उसने किसी आभा मय व्यक्तित्व को बेदखल करने के कितने लजीज और अजीज नुस्खे ईजाद कर लिये हैं! मार्ग-दर्शक,संरक्षक जैसे कितने ही झन्नाटेदार पद सृजित किये हैं उसने।भला ऐसी तरकीब आदमी के सिवा और कौन भिड़ा सकता है,जहाँ चोट भी की जाये और सामने वाला आहत भी महसूस न करे।और एक हमारी दुनिया है जहाँ कभी चाँद चाँद होता है,तो कभी कोई पूछने वाला भी नहीं होता।बस झुलसते रहो अपनी विरह की आग में।और दिन की अग्नि कुछ ज्यादा ही जलाती है।
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 594

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 3, 2017 at 10:16am
आभार एवं नमन आदरणीय समर जी,एक नया लफ्ज़ सीखने को मिला,शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 9:37pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,प्रस्तुति बहुत तवील हो गई है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2017 at 4:18pm
आभारी हूँ आदरणीय मिश्र जी,'राजनीति' ही है,सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 1, 2017 at 3:37pm

रणनीति....शायद टाइपिंग मिस्टेक है राजनीती होगा .खूब उतारा...मैं यहाँ उदहारण का कयास लगा रहा हूँ ....बहुत ही साहित्यिक अंदाज में बढ़िया रचना फिर शानदार कटाक्ष ...बहुत ही पसंद आई ..खूबियों से भरपूर इस रचना पर आपको मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं आदरणीय मनन जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
56 minutes ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service