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ग़ज़ल निकल गए आँसू,,,,

   2122  1212  22

दफ़अतन जो निकल गए आँसू।

सारे मंज़र बदल गए आँसू।।

लाख की कोशिशें छुपाने की।

राज़ दिल का उगल गए आँसू।।

इक ख़ुशी ने मुझे पुकारा है।

ये ख़बर सुन के जल गए आँसू।।

ख़ुश्क दामन तुझे बताऊँ क्या।

वो सबब जो सँभल गए आँसू।।

इत्तिफ़ाकन ही ख़ुश्क थीं पलकें।

इंतिकामन मचल गए आँसू।।

इक तबस्सुम जो आगया लब पर।

मारे ग़म के पिघल गए आँसू।।

कौन सा पल मुझे हंसाएगा।

मेरी फ़ितरत में ढल गए आँसू।।

हाथ ख़ाली हैं फिर सहर अपने।

लो तुम्हें फिर से छल गए आँसू।।

      मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2017 at 4:54pm

इत्तिफ़ाकन ही ख़ुश्क थीं पलकें।

इंतिकामन मचल गए आँसू।।.......क्या ख़ूब शाइरी है ..वाह ..
ताहिर फ़राज़ साहब याद आ गये... 
//इतिफाक़न जो हँस लिया हमने 
इन्तिकामन उदास रहते हैं.//
बहुत ख़ूब ग़जल हुई है ..ढ़ेरों दाद क़ुबूल करें ...
अरकान 
२१२२/ १२१२/ २२ कर लीजिये 
सादर 

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