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मुहब्बत के सफ़र की दास्ताँ है,
तू मेरी जान है मेरा जहाँ है,
मेरी मुस्कान होठों पर सजी और,
मेरा ग़म मेरी आँखों में निहां है,
शबे -ग़म हिज्र का तुझको सताये,
वो मेरी ज़िन्दगी में भी रवां है,
सफ़र में साथ मेरे तुम हो जानां,
मेरे कदमों के नीचे आसमां है,
लबों से कुछ नहीं कहता कभी वो,
बस उसके लम्स से सबकुछ अयाँ है..
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया Mohammed Arif जी
Tasdiq Ahmed Khan जी, आपका बहुत बहुत आभार, यूँ ही मार्गदर्शन करते रहे, आप सबका स्नेह ही मेरा संबल है, नमन आपको...
मुहतर्मा अनिता साहिबा , ग़ज़ल की अच्छी कोशिश की है आपने , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ|
शेर2 उला मिसरा यूँ करके देखें----सजी होटो पे है मुस्कान लेकिन
शेर3 उला मिसरा यूँ करके देखें ----सताता है तुझे जो हिज्र का ग़म
शेर4 उला मिसरा यूँ करके देखें-----सफ़र में तुम हो तो लगता है एसा
शेर5 यूँ करके देखें ---" लबों से ही नहीं कहता है वो कुछ ---निगाहों से मगर सब कुछ अयाँ है "
आदरणीया अनिता मौर्य जी आदाब,
बहुत ही रोमाण्टिक ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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