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ग़ज़ल (जो अज़मे तर्के उल्फ़त कर रहा है )

(मफाईलुन-मफाईलुन-फऊलन )

जो अज़मे तर्के उल्फ़त कर रहा है|
ये दिल फिर उसकी हसरत कर रहा है |

लगाए ज़ख़्म देने वाला मरहम
ये दिल यूँ ही न हैरत कर रहा है |

वफ़ा मिलती कहाँ है हुस्न में वो
जिसे पाने की जुरअत कर रहा है |

दिले नादां दगा जिसकी है फ़ितरत
उसी से तू महब्बत कर रहा है |

मरीज़े इश्क़ की लौटी हैं साँसें
कोई शायद अयादत कर रहा है |

मिलेंगे हश्र में यह बोल कर वो
मुझे कूचे से रुख्सत कर रहा है |

कोई तस्दीक़ उम्मीदे वफ़ा में
दगाबाज़ों की मिन्नत कर रहा है |


जुरअत--हिम्मत , अयादत --बीमार को देखना
मिन्नत --खुशामद

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 22, 2018 at 1:06pm

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Mohammed Arif on February 22, 2018 at 10:05am

आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,

                                अच्छे अश'आरों से सजी ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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