For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे )

(फाइलातुन -फइलातुन- फइलातुन-फेलुन )

दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे |
कूचये यार में वो अपना ठिकाना चाहे |

मैं ही आया हूँ नहीं सिर्फ़ परखने क़िस्मत
उन को तो अपना हर इक शख्स बनाना चाहे |

थाम के हाथ जो देता हो हमेशा धोका
कौन उस शख्स से फिर हाथ मिलाना चाहे |

फितरते शमअ जलाना है तअज्जुब है मगर
जान परवाना वहाँ फिर भी लुटाना चाहे |

मुफ़लिसी के हैं यह मारे हुए ज़ालिम वरना
तेरी दहलीज़ पे सर कौन झुकाना चाहे |

दरमियाँ अपने रहे दोस्ती यूँ ही क़ायम
मेरे महबूब भला कब यह ज़माना चाहे |

हर नज़र मुझ पे ही तस्दीक़ लगी है वरना
उनके चहरे से नज़र कौन हटाना चाहे |

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 740

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 14, 2018 at 6:23pm

जनाब राम अवध साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 14, 2018 at 6:22pm

जनाब नीरज साहिब ,ग़ज़ल को पसंद करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 14, 2018 at 5:30pm

हर शेर खूबसूरत क्या खूब ग़ज़ल है।

मुबारकबाद कुबूल फरमायें।

Comment by Neeraj Nishchal on February 14, 2018 at 11:00am

ओह्ह क्या बात है आदरणीय tasdiq भाई आखिरी शेर ने बहुत ही कातिल है कितनी दाद दूँ समझ नही आता ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 14, 2018 at 10:22am

मुहतरम जनाब विजय साहिब ,आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया ,और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 14, 2018 at 10:21am

जनाब सलीम रज़ा साहिब ,ग़ज़ल में आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया ,शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 14, 2018 at 10:19am

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,आपकी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by vijay nikore on February 14, 2018 at 9:55am

 //मुफ़लिसी के हैं यह मारे हुए ज़ालिम वरना 
तेरी दहलीज़ पे सर कौन झुकाना चाहे |//

भाई तस्दीक अहमद जी, गज़ल बार-बार पढ़ी... दिल से बधाई। 

Comment by SALIM RAZA REWA on February 14, 2018 at 12:07am

मैं ही आया हूँ नहीं सिर्फ़ परखने क़िस्मत
उन को तो अपना हर इक शख्स बनाना चाहे |.... वाह 

Comment by SALIM RAZA REWA on February 14, 2018 at 12:06am

वाह वाह मुरस्सा ग़ज़ल...  हुई है जनाब तस्दीक साहब  वाह वाह क्या कहने हर शेर के लिए मुबारक़बाद.. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service