ग़ज़ल (मुझको अपना बना कर दगा दे गया )
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(फाइलुन-- फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन)
कोई उल्फ़त का बहतर सिला दे गया |
मुझको अपना बनाकर दगा दे गया |
जो खता मैं ने की ही नहीं प्यार में
उफ़ मुझे वो उसी की सज़ा दे गया |
दास्ताँ मैं तबाही की कैसे कहूँ
वो मुझे प्यार का वास्ता दे गया |
दूर यूँ मौत से कब हुई ज़िंदगी
कोई जीने की मुझको दुआ दे गया |
उनका तशरीफ़ लाना ही वक़्ते नॅज़अ
इक मरीज़े वफ़ा को शिफा दे गया |
हश्र के रोज़ होगी मुलाक़ात अब
जाते जाते कोई आसरा दे गया |
एब गीरी से पहले ही तस्दीक़ वो
मुझको चुप चाप इक आइना दे गया |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब बसंत कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
लजबाब गजल हुई है आदरणीय, वाह
मुहतरम जनाब विजय साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
इस दिलकश गज़ल के लिए दिल से बार-बार बधाई, मेरे भाई तस्दीक़ अहमद जी।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब ,ग़ज़ल पसन्द करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन गज़ल।
कोई उल्फ़त का बहतर सिला दे गया |
मुझको अपना बनाकर दगा दे गया |
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
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