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...
हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम,
कुछ भी कहो युँ पहले तो इंसान हैं सनम ।
माना मरीज़ आज मुहब्बत के हो गए,
पर अपनी ज़िन्दगी के सुलेमान हैं सनम ।
ये जो हमारी आंखों में हैं अश्क़ देखिए,
आँसू न इनको समझो ये तूफान हैं सनम ।
हम भूल जाएँगे तुम्हें मुमकिन नहीं मगर,
ऐसा लगे समझना परेशान हैं सनम ।
अब छोड़ दर्द-ए-इश्क़ कभी दर्द-ए-आश्की
इस ज़िन्दगी में अपने भी अरमान हैं सनम ।
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मौलिक व अप्रकाशित
हर्ष महाजन
Comment
आदरणीय समर जी आदाब ,
ख्यालों को कितनी सहजता से पिरोया है सर । आभारी हूँ । 'बैमान' शब्द का पर्याय लेकर फिर मार्गदर्शन के लिए हाजिर होता हूँ सर । बहुत बहुत शुक्रिया सर ।
सादर !
दूसरा शैर यूँ कर सकते हैं :-
'माना मरीज़ आज महब्बत के हो गये
पर अपनी ज़िंदगी के सुलेमान हैं सनम'
तीसरा शैर यूँ कर सकते हैं :-
ये जो हमारी आँखों में हैं अश्क देखिये
आँसू न इनको समझो ये तूफ़ान हैं सनम'
चौथे शैर में 'बे ईमान' को '"बैमान" नहीं कर सकते,इस शैर को दूसरे क़ाफिये के साथ कहने का प्रयास करें ।
आदरणीय समर जी आदाब,
आपकी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया सर ।
(1)सर विकिपीडिया पड़ने की आदत की वजह से ये "सुलेमान" शब्द मिला ।
उनजे मुताबिक ,....सोलोमन=सुलेमान=राजा
(2)सर तीसरे शेर में ...बे-शुमार अश्कों का बहाव को रोकने की इल्तिजा ।
(3) सर चौथे शेर में बेईमान=बैमान ।
सर आपके मार्गदर्शन से ही आगे बढ़ना चाहूंगा ।आपकी इस्लाह का ििनतज़ार रहेगा।
सादर
जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल अभी कुछ और समय चाहती है ।
दूसरे शैर में 'सुलेमान' का क्या अर्थ लिया है आपने?
तीसरे शैर का भाव स्पष्ट नहीं है ।
चौथे शैर में 'बैमान' का क्या अर्थ है?
अगली प्रतिक्रया आपका जवाब आने पर दूँगा ।
आदरणीय राम अवध जी आपकी होंसिला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । आपने सही कहा उस ग्सलती का अहसास हुआ हमें । कुछ सुधार किया है ज़रा गौर कीजियेगा । मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया ।
"पर भूल कर भी कह दें तुम्हें तुमको भूले हम,"
क्या मूल प्रति में सुधार कर सकते हैं ?
सादर ।
आ० हर्ष महाजन जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई। चौथा शेर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है। फायलुन बजाय फऊलुन अर्थात 122 मापनी हो गई है।
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