होली के दोह
मन करता है साल में, फागुन हों दो चार
देख उदासी नित डरे, होली का त्योहार।१।
चाहे जितना भी करो, होली में हुड़दंग
प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।
तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल
रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।
फागुन में गाते फिरें, सब रंगीले फाग
उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।
घोट-घोट के पी रहे, शिव बूटी कह भाँग
होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का स्वाँग।५।
हँसी ठिठौली थाल में, छोड़ दुखों की बेल
हरसाये मन और का, एेसी होली खेल।६।
इतनी भी मत तेज रख, पिचकारी की धार
प्रेम प्यार को रोक ले, नफरत झट रफ्तार।७।
दहन होलिका संग ही, कर दो मन का बैर
रंग न बदले खून में, मागो सबकी खैर।८।
छोड़ो गुस्सा बैर सब,खेलो हिल मिल संग ।
रंगों से होता नहीं, ये जीवन बदरंग।९।
आयी यादें गाँव की, भीगी है फिर आँख
उड़ जाता मन सोचता, होते जो तन पाँख।१०।
हवा नशीली हो गयी, कण-कण में उन्माद
फागुन में फिर बोलिए, हम क्यों हों अपवाद।११।
मौलिक अप्रकाशित
( ★ ओबीओ परिवार के सभी सदस्यों को होली की शुभकामनाएँ ।)
Comment
आ.भाई श्यमनारायण जी, दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार ।
आ. भाई मोहित जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । दोहों पर आपकी मुहर से लेखन सफल हुआ । इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई नरेंद्र जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
इतने अच्छे दोहे ! वाह, आनन्द आ गया।
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, स्नेह के लिए आभार ।
आ. भाई आरिफ जी, प्रशंसा के लिए आभार ।
आ. राजेश दी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थित हो उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन हेतु हार्दिक धन्यवाद ।
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