(फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फाइलुन )
कीजियेगा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर|
हो गए बर्बाद कितने लोग सूरत देख कर |
यूँ नहीं उसकी बुझी आँखों में आई है चमक
वह रुखे दिलबर पे आया है मुसर्रत देख कर|
बागबां आख़िर सितम ढाने से बाज़ आ ही गया
यकबयक फूलों की गुलशन में बग़ावत देख कर |
देखता है कौन यारो आजकल किरदार को
लोग रिश्ता जोड़ते हैं सिर्फ़ दौलत देख कर |
बे वफ़ाई के सिवा इन से तो कुछ मिलता नहीं
आज़माना हुस्न की चौखट पे क़िस्मत देख कर |
वह छुपा कर आसतीं में रखता है ख़ंजर सदा
उसकी जानिब तुम बढ़ाना दस्ते उल्फ़त देख कर |
फिर मुसीबत कोई आने वाली ही तस्दीक़ है
हो रहा है ये गुमाँ उनकी इनायत देख कर |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
'सदा' शब्द लुग़ात की रु से संस्कृत भाषा का शब्द है ।
आ.जनाब नीलेश नूर साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया। आपका कहना सही है लेकिन आजकल शायरी उर्दू या हिंदी में नहीं बल्कि हिंदुस्तानी ज़बान में हो रही है । सदा शब्द तो पुराने मशहूर शायरों ने भी खूब इस्तेमाल किया है । सादर
आ. तस्दीक अहमद जी,
बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ..
सदा हिंदी और उर्दू में अलग अलग मतलब रखता है अत: उर्दू शब्दों के बीच हिंदी का सदा थोड़ा खटकता है
सादर
बहतर है जनाब ।
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब ,ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
आप सही फरमा रहे हैं ,उसे लफ्ज़ "ऐ"से तब्दील कर दिया है
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मक़्ते के ऊला मिसरे में 'ही' भर्ती का शब्द है,देखियेगा ।
आ.जनाब डॉक्टर आशुतोष साहिब ,ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय भाई तस्दीक अहमद जी बहुत ही मनभावन ग़ज़ल है ..हर शेर उम्दा है रचना के लियेहर्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
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