रवि और गीता फर्स्ट ईयर से ही एक दूसरे को पसंद करते थे अतः उनमे दोस्ती हो गई और बाद में प्यार परवान चढ़ा। फाइनल ईयर तक आते आते उन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। रवि को गीता में उसका भावी जीवन साथी दिखता था। रवि ने गीता को अपने दिल के मंदिर में बैठा लिया था। वो तो सपने भी देखने लगा कि गीता ही उसकी और उसके मां बाप की देखभाल करेगी और उसकी गरीबी उन दोनों के बीच नही आएगी।
रवि मिडिल क्लास फैमिली से था और गीता एक फैक्ट्री के मालिक की बेटी थी।
फाइनल ईयर के एग्जाम शुरू होने वाले थे। रवि एक दिन गीता को अपने माँ बाप से मिलाने ले गया। गीता वहाँ खुश दिखी। रवि की माँ गीता से बोली-'भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे और जो तुम्हारे लिये अच्छा हो वो तुम्हे दे।'
रवि ने भी गीता से उसको, उसके माँ बाप से मिलवाने को कहा।
दो दिन बीत गए थे गीता कॉलेज भी नही आई और उसने रवि का फ़ोन भी नही उठाया।
तीसरे दिन गीता आई तो वह रवि से कटने लगी। रवि ने उससे बात करने की कोशिश की लेकिन उसने उसको अनदेखा कर दिया।
कॉलेज खत्म होने के समय रवि ने गीता को पकड़ा और उससे इस बेरुखी का कारण पूछा। गीता ने अपना हाथ छुड़ाया और बोली-'रवि तुम्हारा घर मेरे लायक नही है कल मुझे एक अच्छे खानदान का लड़का देखने आया था उसको मेने शादी की हां कह दी है।'
रवि के नीचे से जमीन खिसक गई उसको गीता की आवाज़ दूर से आती सुनाई दे रही थी।
रवि का तो दिल टूट गया था। उसे गीता की बेवफाई पर गुस्सा भी आ रहा था। रवि ने गुस्से में गीता के एक थप्पड़ मारा तो गीता गुस्से में वहां से चली गई।
रवि अपने आप को अकेला महसूस कर रहा था। उसके दिमाग मे एक ही बात थी कि गीता ने अमीर लड़का मिल जाने की वजह से उसे छोड़ा था।
किसी तरह रवि ने एग्जाम दिए और अपने घर आ गया।
उधर गीता का उसी दिन से बुरा हाल था उसने भी एग्जाम बड़ी मुश्किल से दिए।
गीता रो रही थी और कहे जा रही थी कि रवि मुझे माफ़ कर देना। जिस दिन में तुम्हारे घर गई थी तो तुम्हारी माँ ने कहा था कि, बचपन मे ही उन्होंने तुम्हारी शादी साहूकार की एक हाथ से अपाहिज लड़की से तय कर दी थी क्योंकि साहूकार ने तुम्हारे पिता का सारा कर्ज माफ कर दिया था और यदि मेरी शादी तुम से हो जाती तो साहूकार तुम्हारा घर और खेत बेचकर अपना कर्ज ले लेता और तुम्हारा परिवार सड़क पर आ जाता। मेरे पापा भी हमारी शादी के पक्ष में नही थे और हमें भाग कर ही शादी करनी पड़ती इसलिय मुझसे शादी होने पर भी में तुम्हे अपने पापा से कोई सहायता नही दिला सकती थी। अतः मैनें तुमसे झूठ बोला और हां में बेवफा नही हूँ ।
रवि आज भी गीता को बेवफा समझता है और उसकी माँ उसे देवी।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सर जी,लघु कथा के माध्यम से इस बात को दर्शाया हैं कि हर महिला स्वार्थी नही होती,बल्कि विवाह जैसी रीति को महत्व देती हैं फिर चाहे वो गठ्बन्धन बचपन में ही क्यों ना हुआ हो.बहुत ही बढिया .रचना प्रस्तुती के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा.
जनाब राजेश जी आदाब,अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।
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