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अनुयाइयों की पतंगें (लघुकथा)

'संस्कृति' अपनी 'ऐतिहासिक पुस्तकों' को सीने से लगाए उन जल्लादों के लगभग समीप ही खड़ी थी। 'संस्कार' संस्कृति से नज़रें चुराकर सिर झुकाए नज़ारों पर शर्मिंदा था, पर यहां आदतन साथ खड़े होने पर विवश था। वैश्वीकरण के तथाकथित दौर में धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, व्यावसायिक और सामाजिक धर्म, कर्म, और राजधर्म फ़ांसी के फ़ंदों को निहारते हुए अपनी अपनी दशा और दिशा पर पुनर्विचार तो कर रहे थे, लेकिन चूंकि उनके कैंसर का आरंभिक स्तर डायग्नोज़ हो चुका था, इसलिए उनके इलाज़ में समय, ऊर्जा और धन बरबाद करने के बजाय उन्हें फांसी दिए जाने का अत्याधुनिक निर्णय लिया जा चुका था और क्रियान्वयन होने ही जा रहा था।


समय हो चुका था।‌ सबको एक साथ ही मौत के घाट उतारा जाना था। तभी उनमें से एक  जल्लाद रोने लगा, लेकिन बाक़ी अपने अश्रुपूरित नेत्रों के साथ अपना धर्म निभाने के लिए आदेशानुसार दृढ़ संकल्पित थे।


"मुझे अपनी जड़ों और गुणवत्ता पर बहुत भरोसा है। जब सुनामी और भूकंप भी अपनी भूख मिटा कर शांत हो जाते हैं, तो इस सांस्कृतिक, धार्मिक तबाही का 'तांडव नृत्य' भी समाप्त होगा ही, तुम भी तो कुछ भरोसा रखो अपने पर और अपने अनुयायियों पर !" कुछ सिसकते से हुए संस्कृति ने धीरे से संस्कार से कहा।


"अनुयायी" शब्द सुनकर ही जल्लादों के हाथों से रस्सी ढीली पड़ गई।


" हां, संस्कृति और संस्कारों के सच्चे अनुयायी ही इन फांसियों को रद्द करवा कर इनके कैंसर का प्राकृतिक, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक या फिर अंततः अत्याधुनिक इलाज़ करा सकते हैं!" उनमें से एक ने साथी जल्लादों से अपनी आंखों में चमक के साथ कहा।


सभी जल्लादों ने हामी भरते हुए एक साथ अपने हाथ की रस्सियां छोड़ वहां से प्रस्थान किया। मामला गड़बड़ हो गया। प्रकरण कोर्ट में पुनर्विचार के लिए पुनः लम्बे समय के लिए अटक गया।


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 16, 2018 at 8:16am

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सुशील सरना जी, जनाब समर कबीर साहिब और जनाब विजय निकोरे साहिब।

Comment by vijay nikore on May 15, 2018 at 12:34pm

आपकी लघु कथा सदैव समान अच्छी लगी, आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी

Comment by Samar kabeer on May 13, 2018 at 9:35pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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