2122 2122 212
आँख मुद्दत से चुराती जिंदगी ।
लग रही थोड़ी ख़फ़ा सी जिंदगी ।।
तोड़ती अक्सर हमारी ख्वाहिशें ।
हो गयी कितनी सियासी जिंदगी ।।
सिर्फ मतलब पर किया सज़दा उसे ।
जी रहे हम बेनमाज़ी जिंदगी ।।
रोटियों के फेर में कुछ इस तरह ।
मुद्दतों तक तिलमिलाई जिंदगी ।।
हम जमीं पर पैर पड़ते रो पड़े ।
दे गयी पहली निशानी जिंदगी।।
मुन्तज़िर है मौत उसकी याद में ।
अब नहीं कुछ गुन गुनाती जिंदगी ।।
मैं उसे पढता रहा हूँ उम्र भर ।
एक अनसुलझी कहानी जिंदगी।।
कौन कितने दिन जिया है पूछ मत ।
ख़ास ये कैसी गुजारी जिंदगी ।।
ख्वाहिशें बाकी रहीं सबकी यहाँ ।
साथ कब किसका निभाई जिंदगी ।।
देखिये कीड़े मकोड़ो की तरह ।
बस्तियों की बिलबिलाती जिंदगी ।।
दाँव पर बस दाँव लगते जा रहे ।
है बड़ी शातिर जुआरी जिंदगी ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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