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छेड़ कर उसकी कहानी देखना ।
फिर तबाही आंसुओं की देखना ।।
यूँ ग़ज़ल लिक्खी बहुत उनके लिए ।
लिख रहा हूँ अब रुबाई देखना ।।
अब नुमाइश बन्द कर दो हुस्न की ।
हैं कई शातिर शिकारी देखना ।।
हिज्र ने हंसकर कहा मुझसे यही ।
वस्ल की तुम बेकरारी देखना ।।
वह बहक जाएगा इतना मान लो ।
एक दिन फिर जग हँसाई देखना ।।
तिश्नगी झुक कर बुझा देती है वो ।
बा अदब होती सुराही देखना ।।
मांगता हूँ इश्क़ की पहली नज़र ।
तुम भी अपनी मिह्रबानी देखना ।।
छोड़ आया दिल तुम्हारी बज़्म में ।
याद आऊं तो निशानी देखना ।।
हुस्न पर ठहरी अना कहने लगी ।
अब मेरी जर्रा नवाज़ी देखना ।।
इक इशारा प्यार का तो हो कभी ।
बाद में फिर इश्क़ बाज़ी देखना ।।
मत करो उम्मीद कुछ तारीफ़ की ।
चाल उसकी अब सियासी देखना ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी| हार्दिक बधाई|
प्यारी सी बह्र पर बहुत प्यारी सी ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहिब।
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