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आया सँवर के चाँद चमन में उजास है ।
बारिश ख़ुशी की हो गयी भीगा लिबास है ।।
कसिए न आप तंज यहां सच के नाम पर ।
लहजा बता रहा है कि दिल में खटास है ।।
मिलता नशे में चूर वो कंगाल आदमी ।
शायद खुदा ही जाम से भरता गिलास है ।।
उल्फत में हो गए हैं फ़ना मत कहें हुजूर ।
जिन्दा अभी तो आपका होशो हवास है ।
पीकर तमाम रिन्द मिले तिश्नगी के साथ ।
साकी तेरी शराब में कुछ बात ख़ास है ।
हुस्नो अदा के ताज पे चर्चा बहुत रही ।
अक्सर तेरे रसूक पे लगता कयास है ।।
खुशबू सी आ रही है मेरे इस दयार में ।
महबूब मेरा आज कहीं आस पास है ।।
मक़तूल की सजा थी या कातिल का था गुनाह ।
लेकिन कज़ा के बाद से मक़तल उदास है ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदर्णीय बहुत खूबसूरत.ग़ज़ल आपने कही है । हार्दिक बधाई।
सुंदर गजल हुयी है हार्दिक बधाई।
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