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पढ़ न पाए ये ज़माना इश्क की तहरीर अब

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

पढ़ न पाए ये ज़माना इश्क की तहरीर अब 

इसलिए ही ख़त जलाये औ तेरी तस्वीर अब

मंदिरो-मस्ज़िद में जाकर मिन्नतें-सजदा किये
फिर भी तुमसे दूर रहना है मेरी तक़दीर अब|

लोग कुछ मजनूँ कहें अब और कुछ फ़रहाद भी
यह तुम्हारे इश्क की ही लग रही तासीर अब |

ज़ख़्म गहरा हो गया हो या कि फिर नासूर तो
प्यार का ही लेप उस पर हो दवा अक्सीर अब|

है मुक़द्दर में नही मत सोचकर बैठो मियाँ
बदलेगी तक़दीर निश्चित गर किया तदबीर अब।

रक्त रंजित हो गई है इसलिये माँ भारती
सब के हाथों में है दिखती धर्म की शमशीर अब|

चंद ग़ज़लें कह के ’मिण्टू’ ख़ुद को मत ग़ालिब समझ
हो न पायेगा कभी दुष्यंत-साहिर-मीर अब

बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू'


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 29, 2018 at 11:02pm

आदरणीय छोटेलाल साहब , हौसलाअफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 29, 2018 at 8:31am

आदरणीय बैजनाथ जी कमाल की गजल लिखने के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिये 

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