अरकान- 212 212 12 22
बात कहनी थी जो ज़ुबानी में|
लिख रहें हैं ग़ज़ल कहानी में|
फूल-ख़त संग लाख दर्दोगम
उसने हमको दिये निशानी में|
देवता बन के आये हैं मेहमां
कुछ कसर हो न मेज़बानी में |
प्यार रुसवा मेरा भी हो जाता
जिक्र करता अगर कहानी में |
सर्द मौसम में गर गिरा पल्लू
आग फिर तो लगेगी पानी में |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आद0 बैजनाथ जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बढिया प्रयास। बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर। आली जनाब समर साहब की बातों का संज्ञान लीजियेगा
बहुतखूब बहुतखूब ग़ज़ल हुई बधाई
आदरणीय बैजनाथ जी आदाब,
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का तत्काल.प्रभाव से संज्ञान लें ।
जनाब बैजनाथ शर्मा 'मिंटू' साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले के ऊला मिसरे में क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है,कोई विकल्प तलाश करें ।
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