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दुनिया (लोककथा)

एक लड़का था । बचपन में ही उसके माता-पिता गुजर गए । उसका लालन-पालन उसके नाना ने किया । लड़का अभी आठ-नौ साल का था तभी उसपर दुनिया देखने का भूत सवार हो गया । वह बार-बार अपने नाना से कहता कि मैं दुनिया देखना चाहता हूँ ? नाना समझाते कि बेटा अभी तो तुम्हारे पास बहुत समय है, जब तू बड़ा होगा, दुनियादारी में लगेगा तो तूझे खुद मालूम हो जाएगा कि दुनिया क्या है ? पर लड़का अपने नाना की एक न सुनता और बार-बार दुनिया देखने की रट लगाता ।
एक दिन लड़के के नाना ने कहा, "चलो आज मैं तुमको दुनिया दिखाता हूँ" । इसके बाद लड़के के नाना ने अपना घोड़ा लिया और लड़के के साथ पैदल ही चल दिए । पैदल चलते-चलते वे तीनों एक गाँव में प्रवेश किए । उस गाँव के लोग आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यह बूढ़ा सठिया गया है, घोड़ा लिया है फिर भी खुद पैदल चल रहा है और लड़के को भी पैदल चला रहा है ।
उसके बाद लड़के के नाना ने लड़के को घोड़े पर बिठाया और खुद भी सवार हो कर दूसरे गाँव की ओर चल दिए । दूसरे गाँव के लोग आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यह बूढ़ा तो सठिया गया है, एक घोड़ा लिया है और देखो लड़के के साथ कैसे तन कर बैठा है । यह तो इस वेजुबान घोड़े की जान ले लेगा ।
उसके बाद लड़के के नाना ने लड़के को घोड़े से उतार दिया और खुद सवार होकर तीसरे गाँव की ओर चल दिए । तीसरे गाँव के लोग आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यह बूढ़ा तो सठिया गया है, खुद घोड़े पर सवार है और नन्हीं जान (लड़का) को पैदल चला रहा है । इसके बाद लड़के के नाना घोड़े से उतर कर लड़के को घोड़े पर बैठा दिए और चौथे गाँव में प्रवेश किए । चौथे गाँव के लोग आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यह बूढ़ा तो सठिया गया है, लड़के को घोड़े पर बैठा दिया है और खुद हाँफते हुए लगाम पकड़ कर चल रहा है, लड़का तो पैदल भी जा सकता था या ये दोनों भी तो बैठकर जा सकते थे ।
इसके बाद दोनों घोड़े पर सवार होकर घर पहुँचे । लड़के के नाना ने लड़के से कहा कि देखा दुनिया ! यही है दुनिया । कुछ भी करो दुनिया कुछ न कुछ बोलेगी ही । दुनिया में किसी भी प्रकार से पूर्ण यश नहीं मिलता ।
अगर आपको अपनी मंजिल पानी है तो प्रयासरत हो जाओ,यह मत सोचो कि दुनिया क्या कहेगी क्योंकि दुनिया कुछ न कुछ जरूर कहेगी ।

--प्रभाकर पाण्डेय

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 9:12am
प्रभाकर भैया , बहुत ही शिक्षाप्रद लेख पोस्ट किया है आपने , बहुत बहुत आभार,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 10, 2010 at 1:37am
सुन्दर सन्देश देती हुई कथा..........
Comment by विवेक मिश्र on July 9, 2010 at 6:17pm
बिलकुल सही सन्देश मिलता है. सुनो सबकी; करो अपने मन की..
Comment by Neelam Upadhyaya on July 9, 2010 at 2:48pm
जी प्रभाकर जी । आपने बिल्कुल ठीक कहा । आप कुछ भी करें - अच्छा या बुरा - लोग कुछ न कुछ टीका-टिप्पणी जरूर करेंगे । हम किसी को रोक भी नहीं सकते ऐसा करने से । तो ऐसे में यही ठीक है कि जो उचित हो वही किया जाए । अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए चलना तो पड़ेगा ही । अब मंजिल पानी है तो यह सोच कर कि चाल टेढ़ी है या चाल धीमी है, रुक नहीं सकते । और अगर रुक गए तो गंतव्य का क्या ? इसीलिए अगर आपको अपनी मंजिल पानी है तो प्रयासरत होना ही पड़ेगा । कितना सही कहा है -

"कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातों में कहीं
बीत न जाए रैना"

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