इश्क मे दरिया मे उतरता चला गया l
जितना डूबा दिल निखरता चला गया ll
हमने तो की कोशिशे की जुदा न हो l
फिर भी कैसे बिछड़ता चला गया ll
उसने लहज़ा बदल दिया तभी l
नज़रों से उतरता चला गया ll
उसकी बातों मे फिसल गये सभी l
मैं भी फिर बहकता चला गया ll
वो जितना सुलझते चले गये l
उतना ही मैने उलझता चला गया ll
इश्क भी आसा न था करना यहाँ "यश" l
काँटों पर गुज़रता चला गया ll
योगेश कुमार शिवहरे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अच्छी ग़ज़ल हुई है,,,,, वाह क़ाफ़िए को देखा जा। सकता है,
जनाब योगेश कुमार शिवहरे जी आदाब, ग़ज़ल अभी बहुत समय चाहती है,बह्र और क़वाफ़ी पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है,अगर आप ग़ज़ल सीखना चाहते हैं तो ओबीओ पर उपलब्ध ग़ज़ल की कक्षा का लाभ ले,इस प्रयास पर बधाई स्वीकार करें ।
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी आदाब,किसी भी रचना पर आप बस इतनी सी टिप्पणी देकर गुज़र जाते हैं,ये ओबीओ की परिपाटी नहीं है, कृपया इस ओर ध्यान दें ।
बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online