कई दिनों से तलाश रहा हूँ
एक भूली हुई डायरी
कुछ कहानियाँ
जो स्मृतियों में धुंधली हो गई हैं |
कई सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद
मुड़ कर देखता हूँ
कदमों के निशान
जो ढूढें से भी नहीं मिलते हैं |
कामयाबी के बाद बाँटना चाहता हूँ
हताशा और निराशा
के वो किस्से
जो रहे हैं मेरी जिंदगी के हिस्से |
पर उसे सुनने का वक्त
किसी पे नहीं है
और ये सही है की
नाकामयाबी सिर्फ अपने हिस्से की चीज़ है |
इसलिए अपनी खोई हुई कहानियाँ
और नाकामयाबी
हर किसी को अज़ीज़ है |
खोयी कहानी का ढांचा
यूँ तो अब भी याद है
पर उसे फिर लिखने से मन कतरा रहा है
कामयाबी सिर चढ़ी है
और अतीत को झूठला रहा है |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Comment
सोमेश जी आदाब,
अतीत स्मृतियों की डायरी को टटोलने की तलाश करती लाजवाब रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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