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आदरणीय सुधेन्दु जी,
आपकी प्रस्तुति पर उत्तर छायावाद की प्रच्छाया है. भाव, शब्द और प्रस्तुतीकरण, इन तीनों का प्रभाव व्यापक रूप से हावी है. साथ ही, भौतिक भाव पर आध्यात्मिक भाव की परत भी आकर्षक दिख रही है. इन कारणों से रचना रोचक तो हो गयी है, परंतु शिल्पगत अनियमितताओं के कारण कई स्तरों पर गहन अभ्यास की अपेक्षा रखती है.
आदरणीय, कविताई केवल भाव और शब्दों का संयोग नहीं है. इन्हें उपयुक्त साँचे में भी ढालना होता है, जिसे विधानुरूप शिल्प कहते हैं.
इशारा ये समझें कि प्रस्तुत गीत-प्रतीति की पंक्तियों का शाब्दिक संयोजन फ़ाइलातुन, यानी 2122 के हिसाब से है, लेकिन इसका निर्वहन नहीं हुआ है.
सादर
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