"नहीं! मैं नहीं दूंगी अपने 'गणेशा' को।" विसर्जन के समय बेटी के हठी जवाब से मेरे सामने एक अजीब स्थिति आ खड़ी हुयी।
पता नहीं ये मेरा अपनी बेटी के प्रति प्रेम था या उसकी बालहठ, कि मैं अपनी पारंपरिक मान्यताओं से आगे बढकर अपने घर पर गणपति जी की स्थापना के लिए तैयार हो गया और न केवल ५-७ दिन, बल्कि पूरे ११ दिन गणपति जी हमारे घर में विराजमान रहे। इसी बीच हर दिन बेटी का गणेशजी के साथ एक छोटे बच्चे की तरह प्यार जताना और उसकी उनकी देखभाल करना हमारे लिए एक उत्सव की तरह हो गया था। लेकिन आज विसर्जन की बेला में उसके इस तरह जिद्द करने से मैं विकट स्थिति में फंस गया था। उपस्थित मित्रगण अपने-अपने विचार रख रहे थे।
"रोने दो भाई। आप प्रतिमा लेकर विसर्जन के लिए चलो, देर हो रही है। बच्ची है, हो जाएगी चुप थोड़ी देर में....।"
"नही भाई, मेरे ख़याल से प्रतिमा-विसर्जन रहने ही दो जब इतना लगाव हो गया है बच्ची को बाल गणेशा से।....."
"नहीं बेटा। जब स्थापना की है तो विसर्जन भी आवश्यक है, यही प्रकृति का नियम है। किसी के प्रति उपजे हुए मोह को त्यागना ही तो गणपति विसर्जन का सन्देश है......।"
पिता समान वृद्ध पड़ोसी की बात दिल को छू गयी। उन्हें ये भी लगा कि बेटी से जबरदस्ती ठीक नहीं, यही सोचते हुए उन्होंने बेटी को समझाने का फिर एक प्रयास किया। "देखो तनु, तुम बहुत समझदार बच्ची हो। हमारी बात ध्यान से सुनो, जब हम इन्हें विसर्जित करेंगे तभी तो हम इनसे दुबारा वापिस लौट आने की प्रार्थना कर सकते हैं। क्या तुम नहीं चाहती कि तुम्हारे गणेशाजी वापस फिर से तुम्हारे ही पास आये।"
'"......ठीक है दादू। मैं फिर से गणेशाजी का इन्तजार करूंगी। लेकिन क्या.... ऐसा नहीं हो सकता कि वे मेरे भैया बनकर हमेशा मेरे साथ रहे और मैं रोज उनके साथ खेला करूँ।" बेटी एक प्रश्न के साथ मान गयी थी लेकिन उसकी कही बात मेरे अंदर तक जा लगी।
गणपति-विसर्जन के लिए यात्रा शुरू हो गयी और मेरा मन अनायास ही कुछ सोचने लगा। विसर्जन के बाद मैं "पालना" की ओर जाने का निर्णय कर चुका था..... जहां कई नन्हे-नन्हे गणेशा किसी माँ के आंचल में स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
विरेंदर 'वीर' मेहता
"मौलिक, स्वरचित व अप्रसारित"
Comment
रचना पर आपके प्रोत्साहन देते शब्दो के लिये तहे दिल से शुक्रिया भाई शेख शहजाद उस्मानी जी। टिप्पणी में हमारा नाम गलत शायद त्रुटिवश लिखा गया है। सादर।
रचना पर आपकी भावभीनी टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी। शुक्रिया।
हार्दिक बधाई आदरणीय वीर मेहता जी।क्या बेहतरीन मोड़ दिया है लघुकथा को। विसर्जन से पालना की ओर। एक साथ दो दो संदेश।लाज़वाब प्रस्तुति।
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