रक्त से जिनके सना था,तर-ब-तर कण-कण धरा का,
हिन्द पर कुर्बान थे, भारत के सच्चे लाल थे जो !
सिंह की गर्जन लिए, टूटे फिरंगी गीदड़ों पर,
भय रहा भयभीत जिनसे, काल के भी काल थे जो!!
देख कर वीरत्व जिनका, विघ्न पथ को छोड़ देता ।
स्वयं विपदा काँप जाती,हाथ तूफ़ां जोड़ लेता ।।
जो कनक-सदृश तपाकर स्वयं को, जीते थे हरदम ।
जो कि कायरता, गुलामी, स्वार्थ से रीते थे हरदम ।।
जिनके आगे पर्वतों का कद सदा बौना रहा था ।
तपते अंगारों पे हरदम,जिनका बिछौना रहा था ।।
उष्णता जिनके हृदय की, शैल को पानी बना दे ।
वो जो खुद विपत्ति पर छा कर,उसे फानी बना दे ।।
नाप ली आकाशगंगाएं गरुड़ बन के जिन्होंने ।
काटे थे अहिपाश अंग्रेजी हुकूमत के जिन्होंने ।।
भारती के आन, स्वाभिमान के प्रतिमान थे जो ।
हिन्दू मुस्लिम से परे थे, स्वयं हिंदुस्तान थे जो ।।
दासता माँ भारती की, सूरमा जो सह न पाए।
अश्रु जिनके इस व्यथा पर,,निज नयन में रह न पाए।।
देशहित जिनकी जवानी का रहा क्षण क्षण समर्पित ।
कर गए आज़ाद हमको,कर के अपना शीश अर्पित ।।
धन्य थी वह कोख की जिसने जने थे सिंह-शावक ।
धन्य वह माटी की पाले जिसने ऐसे वीर बालक ।।
हाथ की मेहंदी! सपन! जीवन! नयन का नूर जिसने!
धन्य वह देवी! किया बलिदान निज सिंदूर जिसने!!
जिनके यशगीतों से सारा विश्व गुंजित है, रहेगा ।
सुन के जिनकी वीर गाथाएं हरएक बच्चा पलेगा ।।
हो के जो कुर्बान..हमको दे गए स्वाधीन सांसे ।
जो हमारी नींद की खातिर ,बने थे स्वयं लाशें ।।
साक्षी जिनके त्याग और बलिदान के,धरती-गगन हैं!
उन शहीदों को मेरा क्षण-क्षण नमन! शत-शत नमन है!!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 वृष्टि जी अत्यंत प्रभावशाली भावों से सजी हुई रचना के लिए बधाई । तुकांत लिखने का प्रयास सराहनीय है । जब भी हम तुकांत रचनाएं लिखते हैं तो मात्राओं का ध्यान अवश्य रखते हैं । जब कोई छंद मात्राओं के अनुसार संतुलित होता है तो रचना की गेयता के साथ सार्थकता बनी रहती है ।
गुरुदेव समर कबीर साहब की इस्लाह अत्यंत महत्वपूर्ण होती है । इनकी इस्लाह पर आत्म मंथन अवश्य करें । रचनाओं में निखार आना तय है ।
मुहतरमा वी. एम. Varishth जी आदाब,आपकी रचना ने प्रभावित किया,देश के वीर सपूतों के लिए आपके जज़्बात क़ाबिल-ए-क़द्र हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आपकी इस रचना में कहीं 14-14 मात्रा हैं कहीं ये क्रम बदल जाता है?कृपया रचना के साथ उसकी विधा और विधान भी लिख दिया करें तो पाठकों को अपनी बात कहने में आसानी होगी ।
//बहुत ख़ूब ........बेमिसाल//
जनाब मोहित मिश्रा जी,आप तो इस मंच के पुराने सदस्य हैं ,और ये जानते हैं कि इस तरह की टिप्पणी ओबीओ की परिपाटी नहीं, ये सोशल मीडिया पर चलता है, यहाँ नहीं,यहां तो रचनाकार को पहले आदरपूर्वक सम्बोधित करते हैं,फिर अपनी बात कहते हैं,उम्मीद है आप सहयोग करेंगे ।
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