For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - दुनिया का सबसे बड़ा झूठा, खुद को सच्चा कहता है

नादान से बच्चे भी हँसते हैं, जब वो ऐसा कहता है

दुनिया का सबसे बड़ा झूठा, खुद को सच्चा कहता है

 

मुँह उसका है अपने मुंह से, जो कहता है कहने दो

कहने को तो अब वो खुद को, सबसे अच्छा कहता है

 

चिकने पत्थर, फैली वादी, उजला झरना, सहमे पेड़

लहू से भीगा हर इक पत्ता, अपना किस्सा कहता है

 

सूखे आंसू, पत्थर आँखें, लब हिलते हैं बेआवाज

लेकिन उन पे जो गुजरी है, हर इक चेहरा कहता है

 

इस पार मरें उस पार मरें, मरते तो हम-तुम ही हैं

दोनों तरफ इक क़ातिल बैठा, ख़ुद को राजा कहता है

मौलिक/अप्रकाशित

मुतदारिक मख़्बून मुसक्किन महज़ूज़ 16-रुक़्नी( बहरे-मीर का प्रतिबिम्ब)

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा

22      22     22     22     22     22     22     2 

Views: 1284

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on October 30, 2018 at 4:56pm

आदरणीय तेजवीर जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद.खेद है की मैं यथा समय उत्तर नहीं दे पाया.

Comment by Ajay Tiwari on October 30, 2018 at 4:48pm

आदरणीय विजय जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by vijay nikore on October 30, 2018 at 10:27am

गज़ल अच्छी लगी और इस पर हो रहे वार्तालाप से सीखने को भी मिला। आपको बधाई अजय जी।

Comment by Ajay Tiwari on October 29, 2018 at 5:17pm

आदरणीय समर साहब,

बह्रे-मुतक़ारिब और बह्रे-मुतदारिक में बहुत से आहंग ऐसे है जो एक ही रूक्न 'फ़ेलुन' के दुहराव से बनाते हैं इस लिए उन्हें प्रायः एक ही समझ लिया जाता है. मसलन : 

मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून मुसक्किन मुजाइफ़

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन  फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन

22      22       22     22       22      22     22      22 

 

ढूंढोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम

जो याद न आए भूल के फिर ऐ हमनफ़सो वो ख़्वाब हैं हम - शाद अज़ीमाबादी

इस में 'फ़इलुन'(112) फ़ेलुन (22) आ सकते हैं लेकिन फ़ेल (21) फ़ऊलु(121) या फ़ऊलुन (122) नहीं आ सकते.   

 

मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़  सालिम अल आखिर 16-रुक्नी

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन  फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन

22       22     22      22       22      22     22     22

कूच की साअ'त आ गई सर पर 'शाद' उठा ले झोली-बिस्तर

नींद में सारी रात बसर की चौंक मुसाफ़िर रात नहीं है - शाद अज़ीमाबादी

इस बह्र में 'फ़इलुन' (112) का इस्तेमाल नहीं हो सकता. फ़ेल (21) फ़ऊलु(121) फ़ऊलुन (122) या फ़ेलुन (22) आ सकते हैं. 

ठीक इसी तरह इस ग़ज़ल की बह्र : 

मुतदारिक मख़्बून मुसक्किन महज़ूज़ 16-रुक़्नी

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा

22      22      22      22     22      22      22     2 

और बह्रे-मीर :

मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ मुखन्नक 16-रुक्नी

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन  फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा

22       22     22      22       22      22     22     2

दोनों अलग-अलग बहरें हैं और इनके लिए भी वही नियम लागू होते हैं.

\\जो शाइरी सीधे दिल पर असर करे उसी को तग़ज़्ज़ुल कहते हैं\\

सीधे असर कविता की कोई भी विधा कर सकती है. इस गुण को फ़साहत कहा जाता है. जो आतंरिक गुण ग़ज़ल को अन्य काव्य-विधाओं से अलग करता है उसे तग़ज़्ज़ुल कहते हैं.

कोई भी बात; बशर्ते उसके तथ्य ठीक हों, उसे मानने से मुझे कभी इन्कार नहीं रहा. 

सादर 

Comment by Ajay Tiwari on October 29, 2018 at 3:59pm

आदरणीय नीलेश जी, लय एक व्यक्तिगत तथ्य है इसके आधार पर बह्र तय नहीं हो सकती. एक आदमी कह सकता है की लय ठीक है दूसरा कह सकता है कि ठीक नहीं है. लय का मानक अंदाजे और दूर की कौड़ी वाला होता जबकि अरूज़ के निर्णय ठोस गणित जैसे अकाट्य होते हैं. ख़ास तौर से  बहरे-मीर को लय के आधार पर तय करने का मानक उन लाल बुझकड़ों का उड़ाया हुआ है जो इस बह्र के अरूज़ी स्वरूप को जानते ही नहीं थे और लय की अटकल से इसका निर्णय करते थे. और अरूज़ के मामले में नाम बहुत महत्त्व पूर्ण है नहीं तो गलती होने की संभावना बनी रहती है.  

सादर

Comment by Samar kabeer on October 28, 2018 at 8:19pm

मैं इस समय पारिवारिक उलझनों में फँसा हूँ इसलिये कुछ अधिक लिखना सम्भव नहीं है,वैसे मैं भी ज़ाती तौर पर इसे मात्रिक बह्र ही कहना पसन्द करूँगा,कुछ भी कह देने से वो ग़ज़ल नहीं होती,और ग़ज़लियत जिसे हम तग़ज़्ज़ुल भी कहते हैं उसकी परिभाषा तो हर दौर में एक ही रही है,कि जो शाइरी सीधे दिल पर असर करे उसी को तग़ज़्ज़ुल कहते हैं, लेकिन आप इसे तस्लीम करने में हिचकिचा रहे हैं ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 6:45pm

आ. अजय जी,
बह्र को सिर्फ लय के पैमाने पर देखना चाहिए.. 
असलम, सलीम, सुलेमान जैसे नाम सिर्फ भ्रम उत्पन्न करते हैं... 
ये सारा ताल का खेल है... वही मात्रा पतन की आज्ञा भी देता है और वही अंत में एक लघु लेने की भी...
ताल से ताल मिला..ओ 
सादर 

Comment by Ajay Tiwari on October 28, 2018 at 6:02pm

आदरणीय निलेश जी, आरूज़ को अरूज़ के नज़रिए से ही देखा जाना चाहिए. मात्रिक जैसी संज्ञाए सिर्फ़ भ्रम पैदा करती है. बहरे मीर भी जिसे मात्रिक बह्र की संज्ञा दी जाती है उसे भी मात्रिक कहना एक भ्रम मात्र है. वह वर्णिक छन्दों के ज्यादा करीब है. जल्दी ही इस पर विस्तार से लिखूँगा. और ये बह्र तो किसी तरह से मात्रिक है ही नहीं. सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 5:45pm

आ. अजय जी ,
बनारस को क्योटो कह देने से वो क्योटो नहीं हो जाता,,
नाम कुछ भी दे दें, ये    रहेगी तो मात्रिक बह्र ही ;))

Comment by Ajay Tiwari on October 28, 2018 at 5:44pm

आदरणीय समर साहब, हार्दिक धन्यवाद,

यह एक प्रयोग है और अरूज़ी नुक़्ते से भी अगर सफल है तो मेरे लिए एक संतोषप्रद बात है.

जहाँ तक ग़ज़लियत की बात है इसे आज तक किसी परिभाषा में नहीं बाँधा जा सका है हर आदमी का इसके बारे अपना दृष्टिकोण होता है.

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service