बह्र 1222-1222-1222-1222
बता हर सिम्त तेरा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुझे लेकर अकेला बनके मुझमे कौन रहता है।।
अगर अब मुस्कुराते हो मेरी जद्दोजहद से तुम।
तो बोलो आज तुम सा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुम्हारा प्यार, तुम सा यार तेरी यादें वो सारी।
भुला हर कुछ अवारा बनके मुझमे कौन रहता है।।
गरीबी के दिये सा गर्दिशों में भी मैं जगमग हूँ।
मेरे घर अब उजाला बन के मुझमें कौन रहता है।।
बहा कर खत तेरे सारे यूँ गंगा के किनारे पर।
फकीरां मस्त आला बनके मुझमे कौन रहता है।।
आमोद बिन्दौरी/ मौलिक-अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आमोद जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
बह्र पर आपकी पकड़ अच्छी हो गई है,लेकिन शिल्प और व्याकरण पर अभी अभ्यास की ज़रूरत है,इस पर विचार करें ।
'तुम्हारा प्यार, तुम सा यार तेरी यादें वो सारी।
भुला हर कुछ अवारा बनके मुझमे कौन रहता है'
इस शैर के ऊला मिसरे में शुतरगुरबा दोष है,और सानी मिसरे में 'अवारा' अशुद्ध शब्द है,शुद्ध शब्द है "आवारा",देखियेगा ।
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